नौणी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने सोलन, शिमला और सिरमौर में की जंगलों जांच

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By Hills Post

सोलन: हिमाचल प्रदेश के वनों, विशेषकर चीड़ और बान (ओक) के पेड़ों पर मंडरा रहे सूखे और निर्जलीकरण के खतरे ने विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। इसी गंभीर समस्या की पड़ताल के लिए डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी की एक विशेष वैज्ञानिक टीम ने हाल ही में सोलन, सिरमौर और शिमला जिलों के प्रभावित क्षेत्रों का विस्तृत दौरा किया।

शनिवार को विश्वविद्यालय की पादप रोग विशेषज्ञ डॉ. मानिका तोमर और कीट विज्ञानी डॉ. अजय शर्मा ने वन विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर सोलन जिले के शालाघाट व पिपुलघाट और शिमला जिले के बनूटी क्षेत्र का निरीक्षण किया। टीम ने इन इलाकों में सूखे के तनाव से जूझ रहे चीड़ के वनों का बारीकी से आकलन किया और विस्तृत जांच के लिए मिट्टी और पेड़ों के टिश्यू सैंपल एकत्र किए।

इससे पूर्व, डॉ. मानिका तोमर के नेतृत्व में एक तीन सदस्यीय टीम, जिसमें कीट विज्ञानी डॉ. सुमित वशिष्ठ भी शामिल थे, ने सिरमौर जिले के बोगधार और भुटली मानल क्षेत्रों में बान (ओक) के जंगलों का जायजा लिया था। वहां भी पेड़ों के सूखने और पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहे दबाव को लेकर चिंता जताई गई थी। इस दौरे के दौरान स्थानीय बीडीसी चेयरमैन तेजिंदर कमल, व्यापार मंडल अध्यक्ष अशोक चौहान और प्रधानाचार्य सुशील कमल सहित अन्य स्थानीय प्रतिनिधियों ने वैज्ञानिकों का पूरा सहयोग किया।

वैज्ञानिकों ने प्रारंभिक जांच में पाया है कि प्रदेश में लंबे समय से चल रही शुष्क मौसम की स्थिति (Dry Spell) और गर्मियों के दौरान जंगलों में लगी आग ने पेड़ों की सेहत को भारी नुकसान पहुंचाया है। विशेष रूप से पुराने वृक्ष इस पर्यावरणीय तनाव को झेलने में असमर्थ हो रहे हैं, जिससे स्थिति और गंभीर होती जा रही है।

वैज्ञानिकों द्वारा एकत्र किए गए सभी सैंपल्स को गहन विश्लेषण के लिए विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं में भेज दिया गया है, ताकि पेड़ों के सूखने के वास्तविक और वैज्ञानिक कारणों का सटीक पता लगाया जा सके। प्रयोगशाला से रिपोर्ट आने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन राज्य सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपेगा। इस रिपोर्ट में न केवल वनों के क्षरण के कारणों का उल्लेख होगा, बल्कि इन बहुमूल्य वनों को बचाने के लिए आवश्यक और प्रभावी निवारण उपायों की सिफारिश भी की जाएगी, ताकि प्रदेश की वन संपदा को सुरक्षित रखा जा सके।

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