नई दिल्ली:  देश की राजधानी सहित कई महानगरों में फ्रॉड हिजड़ों की बढ़ती संख्या से परंपरागत हिंजड़ों की छवि प्रभावित हो रही है, जिस पर अंकुश लगाने के लिए हिजड़ों की राष्ट्रीय समिति फरवरी 2011 को नागपुर में राष्ट्रीय सम्मेलन करेगी। उक्त जानकारी देते हुए हिजड़ों के नेता रही झांसी की जाकिर शबनम तथा पप्पी हाजी ने बताया कि हिजड़ों की बिगड़ती छवि और अपराधिक गतिविधियों के चलते परंपरागत हिजड़ों की जान संकट में है, क्योंकि बदलते समय के साथ ही परंपरागत हिजड़ों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा है। नकली हिजड़ों की बदलती संख्या तथा आर्थिक मंदी के चलते परंपरागत हिजड़ों का रूझान जिस्म फरोशी बी तरफ बढ़ रहा है, मगर किसी हद आज भी परंपरागत हिजड़े नाच गा कर ही पैसा कमाते है। पिछले करीब दो दशक से जबरन बने हिजड़ों ने जिस्म फरोशी को काफी बढ़ावा दिया है, जो महिलाएं बनकर समलैगिकतां को बढ़ावा देते हुए पैसा ऐठतें है। वैसे भी परिवार नियोजन कार्यक्रम के चलते हिजडें कम पैदा होने लगे है। जबरन बने हिजड़ों की जिस्म फरोशी का प्रभाव वैश्याओं पर भी पड़ा है। दिल्ली के रैड लाईट एरिया के एक कोठे की संचालक शीलू आटी ने कहा कि माडर्न वैश्याओं को हिजड़ों से कोई खतरा नहीं है, क्योंकि जबरन बने हिजड़े ग्राहकों को वह मानसिक शांति नहीं दे सकते, जो वह महिलाओं से चाहते है।

यह अलग है कि वासना की आग बुझाने में जरूर हिजड़ें सफल कहे जा सकते है। हिजड़ों के जिस्म फरोशी में प्रवेश को शीलू आंटी उचित नहीं मानती, लेकिन यह भी स्वीकार करती है कि भविष्य में हिजड़ें महिलाओं के लिए एक चुनौती जरूर बन जाएंगे। तेजी से पनप रहे हिजड़ों के इस जिस्म फरोशी के धंधे में ताकतवार गिरोह और पुलिसियां तंत्र की भागीदारी की अनदेखी नहीं की जा सकती। हिजड़ों का छोटे स्तर पर मात्र एक सौ रूपये तक लेकर धंधा चलाने का प्रभाव वैश्यावृति करने वाली महिलाओं पर जरूर पड़ रहा है, ऐसा शीलू आंटी का मानना है। मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार चूंकि यह कारोबार दोनो की सहमति से होता है, लिहाजा धोखा खाने पर ग्राहक को भी चुप्पी साधने पर मजबूर होना पड़ता है, जिसका फायदा हिजडें उठाते है।

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