सोलन: विचारों के महाकुंभ, 14वें खुशवंत सिंह लिटरेचर फेस्टिवल का रविवार को समापन हो गया। अंतिम दिन राजनीति, इतिहास, हिमाचल के सामाजिक मुद्दों और पत्रकारिता की चुनौतियों पर गंभीर और बेबाक चर्चा हुई, जिसने कसौली की फिजाओं में एक नई बौद्धिक बहस छेड़ दी।
अय्यर ने याद किए राजीव गांधी
दिन के एक महत्वपूर्ण सत्र में वरिष्ठ राजनेता मणिशंकर अय्यर और जवाहर सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के योगदान पर चर्चा की। अय्यर ने उन्हें सूचना क्रांति और पंचायती राज का जनक बताते हुए कहा कि आज पंचायतों में 14 लाख महिलाओं का चुना जाना उन्हीं की दूरदृष्टि का परिणाम है। उन्होंने कहा कि राजीव गांधी के शासनकाल की उपलब्धियों को समझे बिना उनके योगदान का सही मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।

हिमाचल की संस्कृति और जातिवाद का मुद्दा
वहीं, एक अन्य महत्वपूर्ण सत्र में हिमाचल की संस्कृति से लेकर जातिवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी खुलकर बात हुई। लेखक राजा भसीन ने अपनी पुस्तक “विरासत की गूंज: मिथक और हिमाचल की संस्कृति” पर चर्चा करते हुए प्रदेश की समृद्ध लोक परंपराओं पर प्रकाश डाला। इसी दौरान हाल ही में रोहड़ू में 12 वर्षीय बालक की आत्महत्या का मामला भी उठा, जिसने प्रदेश में जातिवाद की जड़ों पर एक गंभीर बहस छेड़ दी। वक्ताओं ने आधुनिकता के बीच पारंपरिक संस्कृति को बचाने की चुनौतियों पर भी जोर दिया।
बदलते कसौली पर छलका दर्द
एक सत्र में वरिष्ठ पत्रकार चंद्रमोहन ने अपनी बेटी ज्योत्स्ना मोहन के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारिता की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे ‘वीर प्रताप’ जैसे अखबारों ने ब्रिटिश हुकूमत की पाबंदियों के बावजूद आजादी की अलख जगाए रखी। इस दौरान उन्होंने बदलते कसौली पर दुख जताते हुए कहा कि अब यह वो खुशवंत सिंह वाला शांत कसौली नहीं रहा। बढ़ते निर्माण और यातायात ने इसके असली स्वरूप को बदल दिया है।
फेस्टिवल के अंतिम दिन पूजा बेदी, नंदिनी मुरली और संदीप भामर जैसे कई अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे। अंत में, फेस्टिवल के निदेशक और खुशवंत सिंह के बेटे राहुल सिंह ने सभी का धन्यवाद किया और अगले साल फिर मिलने के वादे के साथ तीन दिवसीय साहित्यिक उत्सव का समापन हुआ।