शिमला: हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी को यूनेस्को से एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली है। लाहौल-स्पीति जिले में स्थित इस अनोखे क्षेत्र को यूनेस्को के मानव और बायोस्फीयर (MAB) कार्यक्रम के तहत भारत के पहले ‘शीत मरुस्थल बायोस्फीयर रिजर्व’ के रूप में नामित किया गया है।
इसकी औपचारिक घोषणा चीन के हांगझोउ में 26 से 28 सितंबर तक चली यूनेस्को की 37वीं अंतरराष्ट्रीय समन्वय परिषद की बैठक में की गई। इस नई मान्यता के साथ ही अब भारत के कुल 13 बायोस्फीयर रिजर्व यूनेस्को के वैश्विक नेटवर्क में शामिल हो गए हैं।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इसे प्रदेश के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए वन विभाग को बधाई दी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाते हुए हिमाचल की समृद्ध प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिए प्रतिबद्ध है।

क्या है इस रिजर्व की खासियत?
यह बायोस्फीयर रिजर्व 7,770 वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला है, जिसमें पिन वैली नेशनल पार्क, किब्बर वन्यजीव अभयारण्य और चंद्रताल झील जैसे प्रसिद्ध स्थल शामिल हैं। 3,300 से 6,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह क्षेत्र अपनी दुर्लभ जैव-विविधता के लिए जाना जाता है।
यहां हिम तेंदुए, तिब्बती भेड़िये, आइबेक्स और 800 से अधिक नीली भेड़ों (भरल) का घर है। इसके अलावा, यहां 119 प्रजातियों के पक्षी और 650 से अधिक जड़ी-बूटियों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 47 तरह के औषधीय पौधे भी शामिल हैं, जिनका उपयोग पारंपरिक आमची चिकित्सा पद्धति में होता है।
वन्यजीव विभाग के प्रधान मुख्य अरण्यपाल, अमिताभ गौतम के अनुसार, इस वैश्विक मान्यता से स्पीति के संरक्षण प्रयासों को बल मिलेगा। इससे अंतरराष्ट्रीय शोध को बढ़ावा मिलेगा, स्थानीय लोगों के लिए जिम्मेदार इको-टूरिज्म के अवसर बढ़ेंगे और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भारत की स्थिति और मजबूत होगी।