कश्मीर स्थित श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा की तीर्थयात्रा इस वर्ष 29 जून से आरंभ हो रही है। यात्रा 13 अगस्त यानी श्रावणी पूर्णिमा तक चलेगी। इसी दिन रक्षा बंधन भी है। तीर्थयात्रियों के लिए राज्य सरकार द्वारा सभी प्रबंध पूरे कर लेने के साथ ही यात्रा की उलटी गिनती शुरु हो गई है।
श्री अमरनाथ यात्रा 5000 वर्षों से चल रही है और केवल कुछ ही दिन चलती थी। उसमें दिन प्रति दिन लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब यह यात्रा डेढ़ महीने से अधिक समय तक जारी रहती है और प्रति वर्ष चार लाख से ज्यादा लोग यात्रा में हिस्सा लेते हैं। ‘पहले आओ, पहले जाओ’ के आधार पर यात्रा के लिए पंजीकरण शुरु कर दिया गया है। शुरु के कुछ दिनों में ही दो लाख से अधिक संख्या में तीर्थयात्रियों ने पंजीकरण करवाया है।
श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा हिमालय पर्वतमाला में स्थित है और हिमाच्छादित पर्वतों से घिरी है। पवित्र गुफा श्रीनगर से 96 किलोमीटर दूर है और यात्रा का आधार शिविर पहलगाम के मनोहारी पर्यटन स्थल में है। तीर्थयात्रियों के रहने के लिए यात्रा के दौरान तंबुओं वाला एक विशाल नगर‑सा यहां बन जाता है। पहलगाम से पवित्र गुफा की दूरी 46 किलोमीटर है। तीर्थयात्री यहीं से पारंपरिक रास्ते पर चार दिनों की यात्रा पर निकलते हैं और चंदनवाड़ी, शेषनाग तथा पंचतरणी में रात्रि विश्राम करते हैं। पहलगाम से चंदनवाड़ी की दूरी तीन किलोमीटर है और यहां से आगे की यात्रा पैदल करनी पड़ती है। बुजुर्गों के लिए घोड़े और बीमार व अक्षम व्यक्तियों के लिए पालकी उपलब्ध है, जिसे चार लोग कंधों पर लेकर चलते हैं। सभी तरफ ‘बाबा अमरनाथ की जय’ का घोष सुनाई देता रहता है। रास्ते में सबसे ऊंचा स्थान महागुन आता है, जो समुद्री सतह से लगभग 14500 फीट ऊंचा है। पवित्र गुफा थोड़ा नीचे यानी लगभग 1300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
आधिकारिक रूप से यात्रा का आयोजन राज्य सरकार श्री अमरनाथ यात्रा न्यास के सहयोग से करती है। यात्रा के दौरान सरकारी एजेंसियां रास्ते भर में आवश्यक सुविधाएं प्रदान करती हैं। इन सुविधाओं में घोड़ों की व्यवस्था, जलापूर्ति, संचार सुविधा, अलाव की व्यवस्था और सस्ते राशन की दुकानें शामिल हैं। देश भर के कई स्वयंसेवी संगठन पूरे रास्ते में पांडाल, भोजन और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करते हैं।
तीर्थयात्रा के महत्व के बारे में कई कथाएं हैं। सबसे महत्वपूर्ण कथा यह है कि इस पवित्र गुफा में भगवान शिव ने अपनी पत्नी माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। दो कबूतरों ने इस वार्तालाप को सुन लिया और अमर हो गए। ये दोनों कबूतर आज भी श्रावणी पूर्णिमा के दिन पवित्र गुफा में प्रकट होते हैं। यह आश्चर्य का विषय है कि जिस जलवायु में कहीं कोई पक्षी नजर नहीं आता, कबूतरों का यह जोड़ा कैसे जीवित रहता है। श्रावणी पूर्णिमा के दौरान पवित्र गुफा में प्राकृतिक बर्फ का शिवलिंग अपने आप आकार लेता है जो चंद्रमा की कलाओं के साथ स्वयं भी घटता‑बढ़ता है। बर्फ के दो और आकार वहां विद्यमान हैं, जो माता पार्वती और भगवान गणेश के स्वरूप हैं। पुराणों में भी पवित्र गुफा का उल्लेख मिलता है।
दूसरी कथा के अनुसार प्राचीन काल में कश्मीर घाटी एक बड़ी झील के भीतर स्थित थी। कश्यप ऋषि ने झील के जल को कई धाराओं द्वारा बाहर निकाल कर घाटी बसाई थी। उन दिनों, भृगु ऋषि हिमालय की यात्रा पर घाटी में आए थे और वह पहले व्यक्ति थे, जिसने पवित्र गुफा की खोज की थी।
एक अन्य कथा के अनुसार एक कश्मीरी गड़रिया बूटा मलिक, जब उस क्षेत्र में जानवर चरा रहा था तो उसने पवित्र गुफा की खोज की थी। पवित्र गुफा में जो चढ़ावा चढ़ता है, उसका एक हिस्सा आज भी मलिक परिवार को प्राप्त होता है।
अपने कश्मीर वृत्तांत, जिसे कल्हण द्वारा रचित ‘राजतरंगणी’ की उत्तर कथा कहा जाता है, जोनराजा ने कहा है कि सुल्तान जैनुल आबदीन (1420‑1470) ने लिद्दर नदी के बाएं किनारे पर नहर बनवाते समय श्री अमरनाथ की यात्रा की थी।
कश्मीर के लोगों के लिए इस तीर्थयात्रा का खास महत्व है। घाटी में सदियों से साथ‑साथ रहने वाले हिन्दुओं और मुसलमानों के आपसी भाईचारे को यात्रा ने मजबूत किया है। यद्यपि यह हिन्दुओं की तीर्थयात्रा है, लेकिन मुसलमान, तीर्थयात्रियों को सभी जरूरी सेवाएं उपलब्ध कराकर समृद्ध पंथनिरपेक्ष परंपराओं का निर्वहन करते हैं। इन सेवाओं में घोड़ों व पिट्ठुओं (बुजुर्गों और बीमार लोगों को पालकी में बिठाकर ले जाना) की सेवाएं शामिल हैं। कुछ वर्षों पहले की बात है, जब खराब मौसम में तीर्थयात्री फंस गए थे, तब अनन्तनाग क्षेत्र के मुसलमानों ने उन्हें अपने यहां पनाह दी थी।
2006 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बावजूद, यात्रा के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। वास्तविकता यह है कि यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ ही रही है। यह तीर्थयात्रा घाटी में हिन्दू‑मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
अशोक हांडू, स्वतंत्र लेखक