अलीगढ़: मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास में 20 नवम्बर, 2010 को एक नवीन अध्याय जुड़ गया। जब केन्द्रीय वित्त मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने मुर्शिदाबाद (प0 ब्ंागाल) में अमुवि केन्द्र की आधारशिला रखी। आधारशिला समारोह को सम्बोधित करते हुए मुखर्जी ने अमुवि द्वारा देश के विभिन्न भागों में अपने शिक्षा केन्द्र स्थापित करने के निर्णय की सराहना करते हुए कहा कि मुझे आशा है कि अमुवि केन्द्र इस क्षेत्र के शैक्षिक पिछडेपन को समाप्त करते हुए क्षेत्रीय मुसलमानों को शिक्षा के द्वारा सशक्तिकरण प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि केन्द्र की स्थापना अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान को सच्ची श्र्रद्यांजली है।
आधारशिला समारोह में अतिथियों एवं विशिष्ट नागरिकों का स्वागत करते हुए अमुवि कुलपति प्रो0 पी0के0 अब्दुल अजीज़ ने कहा कि देश की विभिन्न सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले पिछडे़ वर्ग को अपने केन्द्रों द्वारा शिक्षा प्रदान करने की यह कोशिश अमुवि के इतिहास का एक एतिहासिक क्षण है। प्रो0 अजीज़ ने आशा व्यक्त की कि समयानुसार यह केन्द्र स्वयं विश्वविधालय का रूप ग्रहण कर लेंगे।
विदित हो कि 133 वर्षों पूर्व 8 जनवरी 1877 को लार्ड लिट्टन द्वारा एम0ए0ओ0 कालेज (अमुवि की मातृ संस्था) आधारशिला रखने के समय सर सैय्यद ने कहा था, आज हम एक ऐसा बीज बो रहे हैं जो जिसके पेड़की शाखें भविष्य में बरगद के पेड़ की तरह स्वयं अपनी जडे़ जमा लेगीं और वे विशालकाय रूप लेगीं। 20 नवम्बर 2010 को सर सैय्यद का यह चिन्तन मुर्शिदाबाद में साकार हुआ।
यह उचित अवसर है जबकि हमे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के 133 वर्षों के इतिहास का तुल्नात्मक आकंलन करना चाहिए। भारतीय शिक्षा जगत में सर सैय्यद का आना और फिर उनके द्वारा शैक्षिक रचनात्मक कार्य स्वयं भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। अपने समय में सर सैय्यद के विचार समयानुसार अत्याधुनिक थे जिनकी वर्तमान समय में भी प्रासिगता है। अपने एक व्याखान में सर सैय्यद ने कहा था कि, ’’ इस शिक्षण संस्था की स्थापना के पीछे मुख्य उद्देश्य उन्हंे अपनी स्थिति से बाहर निकालना है। उनकी शिक्षा नीति में शिक्षण संस्था का आवासीय चरित्र बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे शिक्षा के साथ-साथ एक सफल व्यवहारिक पीढ़ी तैयार करना चाहते थे जिसमें वे सफल भी रहे। एम ए औ कालेज और उसके बाद अमुवि के पूर्व छात्रों ने विश्व पटलपर अपनी उपस्थित दर्ज कराई और उनके उल्लेखनीय कार्यों का पूरा इतिहास उपलब्ध है। सर सैय्यद अपने शैक्षिक मुहिम पर एकाग्रता से कार्यरत थे। एस के भटनागर ने लिखा है कि सर सैय्यद यह मानते थे कि यदि उनकी शिक्षा संस्था के छात्रों ने राजनीति में दिलचस्पी ली तो शक््की अंग्रेज उनके शैक्षिक आन्दोलन में रूकावटें खड़ी करेंगे और इसीलिए उन्होेेंने छात्रों को राजनीति से दूर रहने का परामर्श दिया। स्वयं पं0 जवाहर लाला नेहरू ने लिखा है कि सर सैय्यद शिक्षा में किसी प्रकार का दखल पसन्द नहीं करते थे। उनकी पहली प्राथमिकता शिक्षा थी और वह सही भी था।’’
अमुवि कुलपति प्रो0 पी0के0 अब्दुल अजीज़ के लिए सर सैय्यद के सपनों को साकार करना आसान बात नहीं थी। जून 2007 में जब प्रो0 अजीज़ ने अमुवि का कार्यभार सम्भाला तो क्रमबद्ध रूप में हिंसात्मक घटनाओं ने अमुवि परिसर को हिला कर रख दिया जिनके परिणाम स्वरूप विश्वविद्यालय परिसर के अन्दर आगजनी और लूटपाट की घटनायें हुई और विश्वविद्यालय को बन्द करना पड़ा। परन्तु प्रो0 अजीज़ ने अपनी प्राथमिकतायें तय कीं और शान्तिपूर्ण तरीके से अथक मेहनत करके विश्वविद्यालय में पुनः शैक्षिक शान्तिपूर्ण वातावरण को स्थापित करने में सफल हुए। उन्होंने विश्वविद्यालय में न केवल नए छात्रावासों का निर्माण कराया बल्कि नए रोजगार पूरक पाठ्यक्रम लागू किए। उनकी उपलब्धियों की सूची इतनी लम्बी है कि उसकी चर्चा यहाँ मुमकिन नही है। परन्तु उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्होंने विभिन्न राज्य सरकारों के आग्रह पर विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार विभिन्न कमेटियों द्वारा जनतान्त्रिक प्रणाली का उपयोग करते हुए अमुवि केन्द्रों की स्थापना के लिए केन्द्रीय सरकार से न केवल अनुमोदन प्राप्त किया बल्कि उससे आवश्य फण्ड भी मन्जूर करा लिया।
अमुवि कुलपति प्रो0 अजीज़ के लिए केन्द्रों की स्थापना का मार्ग इतना सरल नहीं था। अमुवि बिरादरी का एक छोटा वर्ग पहले दिन से उनका विरोधी था और उनके रास्ते मंे हर प्रकार की बाधायें खड़ी करता रहा था। परन्तु यह सत्य है कि यदि मेहनत, लगन और परोपकार भावना से कोई कार्य किया जाए तो स्वयं भगवान की मदद मिलती है। प्रो0 अजीज़ अपने एक के बाद के एक प्रयत्नों में सफल होते गए और उन्होंने वह कार्य कर दिखाया जोकि अमुवि के इतिहास में किसी भी कुलपति ने करने अथवा सोचने की हिम्मत नहीं की। 20 नवम्बर 2010 को वे मुर्शिदाबाद जैसे पिछडे़ क्षेत्र में अमुवि के प्रथम केन्द्र की स्थापना में सफल हुए। उनके विरोधी अक्सर यह कहते पाए गए कि अमुवि की मस्जिद के 25 कि0मी0 के बाहर अमुवि कानूनी रूप से अपने केन्द्र अथवा संस्थान स्थापित नहीं कर सकती। इस आलेख में इस मिथ्या प्रोपेगण्डे को उजागर करना नितान्त आवश्यक है।
सत्यता यह है कि एम ए ओ कालेज की स्थापना के तुरन्त बाद ही इस महान शिक्षा संस्थान के प्रसार की कोशिशें आरम्भ हो गई थीं। सर्व प्रथम एम ए ओ कालेज को विश्वविद्यालय का स्वरूप प्रदान किया गया। दिसम्बर 1920 को जब अमुवि एक्ट प्रभावी हुआ तो अमुवि को अपने स्कूल और कालेज स्थापित करने एवं संचालित करने का अधिकार दिया गया तथा साथ ही अलीगढ़ जनपद में अन्य स्कूलों और कालेजों को सम्बद्ध करने का भी अधिकार दिया गया। इस प्रकार सर सैय्यदके सपने धीरे धीरे सकार हो रहे थे।
सर्व प्रथम बेग समिति ने भारत सरकार से सिफारिश की कि अमुवि को अपने वर्तमान परिसर से बाहर भी उच्च शिक्षा एवं शोध के संस्थान स्थापित करने की अनुमति दी जानी चाहिए। सर सैय्यद के जन्म दिन पर अमुवि में एक समारोह से सम्बोधित करते हुए मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने घोषणा की कि यदि अमुवि मध्य प्रदेश में अपना शिक्षा केन्द्र स्थापित करे तो न केवल मुफ्त भूमि प्रदान की जायेगी बल्कि एक करोड़ का वित्तिय अनुदान भी दिया जायेगा। इस घोषणा का लाभ उठाते हुए भोपाल की गरीब नवाज़ फाउन्डेशन ने 21 जुलाई 2003 को तत्कालीन अमुवि कुलपति नसीम अहमद को एक समारोह सम्ंबोधित करने के लिए आमन्त्रित किया । समारोह के उपरान्त तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह को गरीब नवाज फाउन्डेशन ने 30 मार्च 2007 को एक ज्ञापन देकर भोपाल में अमुवि केन्द्र स्थापित करने की मांग की । मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने उक्त ज्ञापन को अमुवि को प्रेषित करते हुए परामर्श दिया कि उस पर अमुवि एक्ट की धारा 12(2) के अन्तर्गत विचार किया जाए तथा विश्वविद्यालय की संवैधानिक समितियों की उन पर अनुसंसा प्राप्त की जाए ताकि विजिटर (भारत के राष्ट्रपति) का अनुमोदन लिया जा सके। उसी समय केरल के शिक्षा मंत्री एम ए बेबी ने केन्द्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री एम ए ए फातमी से भेंट करके केरल के मल्लापुरम जिले में अमुवि केन्द्र की स्थापना की माँग की। अमुवि कोर्ट की 2 दिसम्बर ,2007 को सम्पन्न हुई बैठक में श्री मुहम्मद आसिफ ने अमुवि एक्ट की धारा 12 (2) के अन्तर्गत भारत के अति पिछडे़ क्षेत्रों में अमुवि केन्द्रो की स्थापना के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसे कोर्ट ने अनुमोदित कर दिया। 17 जनवरी 2008 को अमुवि एगजीक्यूटिव कमेटी ने कटिहार (बिहार), पूने (महाराष्ट्र), मल्लापुरम (केरल), मुर्शिदाबाद (प0बंगाल) और भोपाल (मध्यप्रदेश) में केन्द्र स्थापित करने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर दिया। तदउपरान्त अमुवि ऐकेडेमिक काउन्सिल ने भी उक्त निर्णय पर अपनी मुहर लगा दी और अमुवि कुलपति से आग्रह किया कि वे केन्द्रों की स्थापना के लिए प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित करें ताकि अमुवि एक्ट द्वारा भारत के मुसलमानों के शैक्षिक एवं सासंकृतिक उत्थान की जिम्मेदारी क्रियाविन्त की जा सके।
अमुवि की संवैधानिक समितियाँ की अनुशंसा पर कार्यवाही करते हुए कुलपति प्रो0 अजीज़ ने भारत सरकार को पांच अति पिछडे़ मुस्लिम बहुल्य क्षेत्रों में केन्द्रों की स्थापना का प्रस्ताव प्रेषित किया जोकि सच्चर कमेटी और फातमी कमेटी की सिफारिशों के भी अनुरूप था। प्रो0 अजीज़ ने सम्बन्धित राज्य सरकारों से 250-400 एकड़ मुफ्त भूमि की माँग की । केरल, प0 बंगाल और बिहार सरकारों ने तुरन्त इस सम्बंध में कार्यवाही की। केन्द्रीय सरकार ने मुर्शिदाबाद(प0बंगाल) और मल्लापुरम (केरल) के अमुवि केन्द्रों के लिए 25-25 करोड़ रूपये का अनुदान वार्षिक वजट में किया। भारत के राष्ट्रपति ने अमुवि विजीटर के रूप में केन्द्रों की स्थापना को अपनी अनुमति प्रदान कर दी और अमुवि ने अपना पहला सफल कदम मुर्शिदाबाद में अपने केन्द्र की आधारशिला रख कर उठाया।
इतिहास साक्षी है कि सभी देशों, सामाजिक एवं धार्मिक समूहों और व्यक्तियों के जीवन में कुछ ऐसे क्षण आते हैं जो न केवल इतिहास की दिशा को मोड़ देते है बल्कि इस देश,वर्ग अथवा समूह की दशा को भी सकारात्मक अथवा नकारात्मक रूप प्रदान करते हैं। अमुवि के इतिहास में 8 जनवरी 1877 का वह दिन बहुत महत्वपूर्ण है जब लार्ड लिट्टन ने एम ए ओ कालेज की अधारशिला रखी थी, उस क्षण ने भारतीय मुसलमानों और भारतीय शिक्षा जगत में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन किया। इसी प्रकार अमुवि इतिहास में 20 नवम्बर 2010 का वह पल भी महत्वपूर्ण जब मुर्शिदाबाद में केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने अमुवि केन्द्र की आधारशिला रखी। इतिहास ने वर्तमान अमुवि कुलपति को भारतीय मुसलमानों की उस ’श्रेणीमें खड़ा कर दिया है जिसमें सर सैय्यद अहमद खान से लेकर डा0 जाकिर हुसैन और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद आते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि भविष्य के इतिहासकार अमुवि कुलपति प्रो0 पी0के0 अब्दुल अजीज़ को आधुनिक भारत का सर सैय्यद दर्ज करेंगे। अब यह समय है जबकि अमुवि बिरादरी और अमुवि के शुभचिन्तक अपने स्वहित को त्याग कर सर सैय्यद के अलीगढ़ आन्दोलन को पुनः जीवित करें और उसका केवल एक मार्ग है कि वर्तमान अमुवि कुलपति प्रो0 पी0के0 अब्दुल अजीज़ का हर प्रकार से सहयोग करें।
परस्पर सहयोग न केवल शिक्षा जगत में अमुवि को नए आयाम देगा बल्कि अन्तर्राष्टीªय स्तर पर भारत का सिर भी ऊँचा करेगा।