आधुनिकता की दौड में
मनुष्य खोता जा रहा
अपना अस्तित्व, पहचान |
सिमटता और शायद
सिंकुडता जा रहा
कुछ एक उपकरणों का
साथ लेकर |
भूल गया, चैन से जीना,
चौपाल की मस्ती, चिट्ठी का मजा,
चुल्हे की रोटी, पीपल की छांव,
कबड्डी का खेल, शादी के गीत,
विछोह के आंसू |
मैं इसे क्या नाम दूं
आधुनिकता या
पिछडापन, जहां से
संसार की शुरुआत
हुई थी |