समय की उदासी में
जब धुन्ध
घने पेडों से
ऊपर उडती
बादलों में
समा जाती है
निरन्तर बरसते बादल
प्रातः के सूरज
की चमचमाती रश्मियों को
छीन लेते है
फिर काली घटाओं में
फैलता उदासी का सफर
लम्बा हो जाता है
और बरसात की
सुलगती यादों में पुनः पुनः
खो जाता है ।