ज्वालामुखी: तिब्बतियों के धर्मगुरू करमापा के मामले में हिमाचल पुलिस के दावों की करमापा कार्यालय की ओर से उपलब्ध कराये गये दस्तावेजों ने हवा निकाल कर रख दी है। करमापा को चीनी जासूस मानने वाले लोग आज कुछ भी बोलने की स्थिती में नहीं हैं। सत्रहवें करमापा उग्येन त्रिनले दोरजी जो कि इन दिनों सिद्घबाडी के ग्यूतो तांत्रिक मठ में अस्थायी तौर पर रह रहे हैं। पिछले दिनों अचानक उस समय विवादेां में घिर गये थे। जब उनके मठ से भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा बरामद हुई थी। जिसमें अमेरिकी डालर चीनी युवान भी थे। करमापा कार्यालय की प्रभारी व प्रवक्ता डेकी चुंगयालपा ने इस संवाददाता से खास बातचीत में बताया कि करमापा पर लगाये गये तमाम आरोप निराधार पाये गये हैं। जांच पडताल में यही बात सामने आयी है कि करमापा कार्यालय को धन का सही हिसाब किताब रखना था। लेकिन यह भी सच्च है कि करमापा का वित्तिय व प्रशासनिक मामलों में कहीं कोई सीधा संबन्ध नहीं होता है। डेकी ने अफसोस जताया व कहा कि करमापा अवतारी लामा हैं।
तिब्बती समाज में उनके प्रति अगाध श्रद्घा है। लेकिन उन पर अफवाहों के आधार पर झूठे आरोप लगाये गये। उनका चरित्र हनन हुआ। वह सवाल उठाती है ंकि आखिर किस आधार पर उन पर सवाल उठाये गये। वह भी बिना किसी सबूत के। काबिले गौर है कि इस छापामारी में करमापा मठ से धन बरामद किया गया व करीब 25 देशों का था। जो कि कुल आठ करोड के करीब है। निसंदेह करमापा मठ में छापे के दौरान जब एक ही सिरिज के नोटों के साथ करीब करोड की चीनी मुद्रा मिली तो उसी आधार पर करमापा को चीनी जासूस माना जाने लगा। मिडिया ने भी यही बात उछाल दी।। यही नहीं हिमाचल पुलिस के आला अधिकारियों ने मिडिया जो तथ्य बताये वह भी विरोधाभाषी थे। उनकी वजह से अफवाहों को ताकत मिली। कि तिब्तियों के तीसरे सबसे ताकतवर धर्मिक नेता करमापा जोकि पंचेन लामा व दलाई लामा के बाद पूजे जाते हैं व कुछ साल पहले तिब्बत के ल्हासा के पास त्सरूप मठ से भाग कर भारत आये थे। पर सवाल उठाये गये। बात उस समय बिगड गयी जब हिमाचल पुलिस के एक आला अधिकारी बाकायदा टेलिविजन चैनल में बयान दिया कि करमापा मठ में चीन के सिम कार्र्ड व डाटा कार्ड भी मिले हैं। उनका दावा था कि करमापा ने उनके माध्यम से चीन के एक शहर में बात की है। लेकिन बाद में जांच के बाद पाया गया कि यह डाटा कार्ड भारत की ही नामी टेलिकाम कंपनी का था। व इसे करमापा कार्यालय व मठ के लोग अपने कंप्यूरटर व लेपटाप पर इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिये इस्तेमाल कर रहे थे। चीन के जिस शहर के नाम से सिम को जोडा जा रहा था। दरअसल इसको बनाने वाली चीन की नामी कंपनी हवेई कारपोरेशन है। जो दुनिया भर में आने ब्रांड को बेच रही है। भारत में इस कंपनी के उत्पाद भारत संचार निगम इस्तेमाल करती है।
डेकी ने इस संवाददाता से बातचीत में कहा कि मिडिया में करमापा के मामले में चीनी कनैक्शन की बात बिल्कुल निराधार थी। उन्होंने दावा किया कि कांगडा पुलिस ने जो सामान बरामद किया। उसमें भी ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है। चीन के सिम कार्ड भी बरामद हुये थे। बकौल उनके करमापा कार्यालय शुरू से ही कहता रहा है कि जो भी धन था वह चढावा दान राशि है। करमापा के बहुत से अनुयायी चीन से भी आते हैं जो विदेशी मुद्रा ले आते हैं। करमापा कार्यालय ने हालांकि कुछ साल पहले सरस्वती चेरिटेबल टरस्ट की स्थापना की थी। व फेरा के तहत विदेश्ीा दान लेने के लिये 13 अक्तूबर 2003 को आवेदन किया गया। लेकिन भारत सरकार से मंजूरी नहीं मिली। बाद पांच जुलाई 2006 को एक नये टरस्ट करमा गारचेन के नाम से गठन किया गया। इसके लिये फेरा के तहत दान लेने का आवेदन सोलह नवंबर 2010 को किया गया। सरकारी नियमों के तहत इसके लिये तीन साल का इंतजार करना होता है।
लिहाजा आवेदन आज भी पेंडिग है। करमाप मठ की प्रवक्ता बताती हैंकि आवेदन को मंजूरी मिलने के इंतजार में दान में आये धन को मठ में ही रखा जाने लगा। हम लोग इस दिन का इंतजार कर रहे थे कि कब हमें फेरा की अनुमति मिले व कब हम इसे जमा करा दें। उन्होंने जोर देकर कहा कि करमापा मठ ने कहीं भी बेनामी जमीन नहीं खरीदी न ही बेनामी सौदा किया। बकौल उनके करमा गारचेन टरस्ट को जमीन लेने के लिये हिमाचल सरकार ने अनुमति दी थी। इस मामले में एक नया बखेडा तब ,खडा हो गया जब प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने मुख्य सचिव की ओर से करमापा को कलीन चिट देने के एक दिन बाद धर्मशाला में इसका खंडन कर दिया। धूमल ने कहा कि हमने करमापा को न तो अपराधी माना न ही हम कलीन चिट दे रहे हैं जांच जारी है उसका नतीजा आने दो। काबिलेगौर है कि करमापा को दलाई लामा व चीन की सरकार ने मान्यता दे रखी है।