कांगड़ा के लोक वाद्य व लोक वादक लुप्त होने के कगार पर

ज्वालामुखी: कांगड़ा लोक साहित्य परिषद के निदेशक डा. गौतम शर्मा ने कहा है कि कांगड़ा के पारम्परिक लोक वाद्य व इन्हें प्रयोग करने वाले बजन्तरी लगभग समाप्त हो गए है व इस कार्य में

लगे कुछ लोग भी इससे मुंह मोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि कांगड़ा लोक साहित्य परिषद द्वारा लोक वाद्यों व लोक वादकों सम्बंधी करवाएं गए सर्वेक्षण ने इस बात की पुष्टि की है कि

बाबा बालकरूपी मंदिर के अतिरिक्त कहीं भी यह संग्रह व समूह मौजूद नहीं है। उन्होंने जिलाधीश एवं मंदिर आयुक्त से अपील की है कि सरकार के अधीन आने वाले मंदिरों में पार परिक लोक वाद्य यंत्रों का संग्रहण किया जाए व लोक वादकों को भी लोक संरक्षण प्रदान किया जाए ताकि जिला कांगड़ा की इस प्राचीन पार परिक धरोहर को संजोया जा सके। डा. गौतम शर्मा

ने बताया कि परिषद के उप निदेशक कमल हमीरपुरी व कुछ अन्य साहित्यकारों ने संगीत नाटक एकादमी के आर्थिक सहयोग से जिला कांगड़ा व चंम्बा के लोक वाद्य यंत्रों का सर्वेक्षण किया है, जिसकी रिर्पोट 15 अगस्त तक संगीत नाटक एकादमी को भेज दी जाएगी। उन्होंने कहा कि नगारा,ढ़ोल,डफले,ताशा,टमक,तुरही,

नरसिंगा,शहनाई,डौरू,दुक्कड़,दतांरा व खंजरी जैसे पार परिक लोक वाद्य यंत्रों का समय रहते संरक्षण नहीं किया गया तो यह लुप्त हो जाऐंगे।