कांगड़ा चाय गुणवत्ता और जायके के लिये प्रसिद्ध

ज्वालामुखी: कांगड़ा चाय अतीत से ही अपने स्वाद एवं गुणवत्ता के लिये पूरे देश में विख्यात है तथा कांगड़ा घाटी में उत्पादित की जाने वाली चाय की गुणवत्ता दार्जिलिंग चाय के समान मानी जाती है। आतिथ्य सत्कार तथा मनुष्य को थकान से निजात दिलाने व तरोताजा रखने वाली चाय विश्व के सभी वर्गों का महत्वपूर्ण पेय है, जोकि अन्य सभी पेय पदार्थों से अधिक उपयोग किया जाने वाला पेय है।

कांगड़ा घाटी की जलवायु एवं भौगोलिक स्थिति को मध्यनज़र रखते हुए, डॉ. जेम्सन द्वारा सर्वप्रथम वर्ष 1849 में अलमोड़ा एवं देहरादून की नर्सरी से चायना चाय का पौधा लाकर पालमपुर क्षेत्र में प्रयोगात्मक रूप में लगाया गया था। इसके उपरान्त कांगड़ा घाटी में चाय की खेती की जाने लगी। विशेषज्ञों के मुताबिक समुद्रतल से 900 से 1400 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्र, जहां वर्ष में 1500-2500 मिलीलीटर वर्षा होती है, को चाय की खेती के उपयुक्त माना जाता है।

जिला कांगड़ा के पालमपुर, बैजनाथ, धर्मशाला व बीड़ में चाय की खेती 4192 हैक्टेयर भूमि पर फैली है, जिसमें जिला कांगड़ा में 1216 हैक्टेयर भूमि पर चायना हाइब्रिड किस्म के चाय के पौधे लगाये गये हैं।

प्रदेश सरकर द्वारा चाय की खेती के लिये बागवानों को प्रोत्साहित करने हेतू अनेक कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। प्रदेश सरकार द्वारा टी प्लॉंट स्थापित करने के लिये आवश्यक उपकरणों पर 70 से 90 प्रतिशत तक का उपदान दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विशेषज्ञों द्वारा सी.एस.आई.आर. व भारत सरकार के क्षेत्रीय चाय बोर्ड के साथ मिलकर टी गार्डन की निगरानी करके चाय के पौधों में फैलने वाली बीमारियों के प्रति जागरूक करने के लिये शिविर, कार्यशाला व गोष्ठियों का समय-समय पर आयोजन किया जाता है।

चाय उत्पादन व विपणन सम्बन्धी अधिक जानकारी हासिल करने के लिये पालमपुर में सरकार द्वारा टी बोर्ड कार्यालय खोला गया है। टी-बोर्ड तकनीकी अधिकारी, पालमपुर के अनुसार कांगड़ा जिला में गत वर्ष 3122 चाय बागवानों द्वारा 2118 हैक्टेयर क्षेत्र में चाय की खेती करके 52.63 लाख किलोग्राम ग्रीन लीफ का उत्पादन किया गया तथा चालू वित्त वर्ष में चाय उत्पादन में बढ़ौतरी करने के लिये चाय बागानों को आवश्यक तकनीकी प्रशिक्षण एवं जानकारी दी जा रही है ताकि चाय उत्पादन को और बढ़ावा मिल सके।

चाय विशेषज्ञों के अनुसार उत्तम चाय उत्पादन प्राप्त करने के लिये चाय के पौधों का 20 साल में एक बार जड़-कलम करना आवश्यक है और चाय की पत्तियों का तुड़ान का सही समय अप्रैल, मई और जून माह तक का रहता है, परन्तु जलवायु के अनुसार चाय के पौधों की वृद्धि के अनुकूल होने की स्थिति में तुड़ान को सितम्बर माह तक भी किया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार चाय का तुड़ान सीज़न के दौरान 28-29 बार किया जा सकता है क्योंकि सात दिन के भीतर चाय के पौधों पर नई पत्तियां अंकुरित हो जाती हैं।

कांगड़ा चाय की गरिमा को बनाये रखने के दृष्टिगत गत दिनों भारत चाय बोर्ड के अध्यक्ष, बासुदेव बैनर्जी एवं कार्यकारी निदेशक, आर.डी. नजीम द्वारा पालमपुर में चाय उत्पादकों के साथ बैठक की, जिसमें प्रदेश सरकार की ओर से सचिव कृषि विभाग ने भी भाग लिया। इस महत्वपूर्ण बैठक में चाय उद्योग को संजीवनी प्रदान करने के लिये विशेष आर्थिक पैकेज़ देने पर विचार किया गया। जिसमें 50-60 वर्ष पुराने चाय बागीचों में पुनः पौधरोपण करने की व्यवस्था की गई है, जिस पर सरकार 50 प्रतिशत अनुदान भी देगी। इस पैकेज़ के अनुसार निजी कंपनियों को कांगड़ा चाय के उत्पादन व मार्किटिंग की जिम्मेदारी सौंपने पर विचार किया जा रहा है ताकि चाय उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ उत्पादकों को उचित दाम भी मिल सके।

कांगड़ा घाटी में चाय उत्पादन की अपार संभावनाएं विद्यमान हैं। इस उद्योग को यदि बड़े पैमाने पर विकसित किया जाए तो यह किसानों तथा बेरोज़गार युवाओं के लिये वरदान साबित हो सकता है, क्योंकि चाय वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हर घर की आवश्यकता बन गई है, जिससे अधिकतर कामगार से जुड़े लोगों की दिनचर्या प्रारम्भ होती है।