शिमला: किन्नौर जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में खेती के तरीकों में बदलाव लाने और किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र, शारबो और कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) ने ‘स्ट्रॉबेरी दिवस’ का आयोजन किया। डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के तहत हुए इस कार्यक्रम का मुख्य फोकस प्राकृतिक खेती के जरिए स्ट्रॉबेरी की पैदावार को बढ़ावा देना था।
इस कार्यक्रम में कल्पा, पूह और निचार ब्लॉक के किसानों के साथ-साथ हमीरपुर से आए बागवानी के छात्रों ने भी हिस्सा लिया। विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि प्राकृतिक खेती न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि इससे छोटे किसानों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है।

केवीके किन्नौर के प्रमुख डॉ. प्रमोद शर्मा ने रासायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त खेती को समय की जरूरत बताया। उन्होंने कहा कि किन्नौर जैसे संवेदनशील इलाकों के लिए प्राकृतिक खेती एक विकल्प नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है। उन्होंने उन 50 से अधिक स्थानीय किसानों की तारीफ भी की, जो पहले से ही फलों की खेती में प्राकृतिक तरीके अपना रहे हैं।
कार्यक्रम का सबसे खास हिस्सा किसान-वैज्ञानिक संवाद रहा, जिसमें प्रगतिशील महिला किसान गंगा बिष्ट ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने पारंपरिक खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाया और इससे उनकी जमीन की सेहत में सुधार हुआ और लागत भी कम हुई। उनका अनुभव दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
इसके अलावा, विशेषज्ञों ने स्ट्रॉबेरी की खेती में कीट और रोगों से प्राकृतिक तरीकों से निपटने के उपाय भी बताए। किसानों और छात्रों को अनुसंधान फार्म पर ले जाकर प्रैक्टिकल ट्रेनिंग भी दी गई। आयोजकों का मानना है कि स्ट्रॉबेरी की फसल किन्नौर के किसानों के लिए न केवल एक लाभकारी विकल्प साबित हो सकती है, बल्कि यह हिमालयी पर्यावरण की रक्षा करते हुए उनकी आजीविका को भी मजबूत कर सकती है।