ज्वालामुखी: रासायनिक खाद को तिलांजली देकर राजेश कुमार ने जैविक खाद एवं अन्य पारम्परिक संसाधनों का प्रयोग करके अपने पॉलीहाऊस के कृषि उत्पादों को कीटाणुरहित बनाने के साथ साथ अपनी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ करके एक मिसाल कायम की है।
हवाई अड्डा गगल के समीप पठानकोट-मण्डी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर स्थित गांव रजोल के 32 वर्षीय युवा राजेश कुमार ने स्नातक की डिग्री हासिल करने के उपरान्त टी-एस्टेट पालमपुर में तीन वर्ष तथा लगभग छ: मास सैन्ट्रो गाड़ी के शो रूम लुधियाना में नौकरी से सन्तोष न मिलने पर घर में कुछ कर दिखाने की लालसा जागृत हुई।
नौकरी को छोडऩे के उपरान्त राजेश कुछ मुख्यधारा से कुछ हटकर कार्य करना चाहते थे। उन्होंने सरकार की उद्यान तकनीकी मिशन योजना के तहत अपने घर के पास 500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में 3 लाख 60 हजार रूपये में पॉलीहाऊस स्थापित किया जिसपर सरकार द्वारा एक लाख 60 हजार रूपये का अनुदान दिया गया। आरम्भ में राजेश कुमार ने अच्छी फसल लेने की लालसा में पॉलीहाऊस में उगाई जाने वाली सब्जियों में रासायनिक खाद को डालना आरम्भ किया जिसके दुष्परिणाम मिलने से उन्हें हानि भी उठानी पड़ी।
एक दिन अकस्मात राजेश कुमार की कृषि विज्ञान केन्द्र कांगड़ा के वैज्ञानिक डा0 सन्त प्रकाश से मुलाकात हुई। उन्होंने उसे अपने पॉलीहाऊस में जैविक खाद के इस्तेमाल तथा कीटाणुओं से बचने के लिए पारम्परिक संसाधन जैसे गौमूत्र, पंचगव्य, लस्सी इत्यादि के प्रयोग करने बारे सलाह दी। इसके उपरान्त राजेश ने कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में जैविक खाद के विशेषज्ञ डा0 वाईएस पॉल से इस बारे विस्तृत जानकारी ली और उन्होंने विशेषज्ञों की सलाह पर अपने पॉलीहाऊस में गौमूत्र एवं लस्सी(जोकि लगभग 15 दिन पुरानी होनी चाहिए) को निर्धारित मात्रा में मिलाकर उसमें कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उपलब्ध करवाई गई अग्निहोत्र की भस्म एवं बायोसूल इत्यादि से स्प्रे करते हैं जिससे उन्हें सब्जियों को नुक्सान पहुंचाने वाले कीटाणुओं से राहत मिल रही है।
राजेश कुमार का कहना है कि रासायनिक खाद से जमीन के पोषक तत्व एवं उपजाऊ क्षमता खत्म हो जाती है जबकि जैविक खाद एवं पारम्परिक संसाधनों से उपजाऊ क्षमता बढऩे के साथ साथ वर्षों तक विद्यमान रहती है।
उन्होंने कहा कि उनके द्वारा अपने पॉलीहाऊस में अधिकतर शिमला मिर्च एवं अन्य सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा है और शिमला मिर्च में सुंडियों को मारने के लिए नीम के तेल का स्प्रे करते हैं जबकि बेक्टीरिया को खत्म के लिए लस्सी गौमूत्र को डालते हैं। उनका कहना है कि रासायनिक खाद की अपेक्षा जैविक खाद से उत्पादिक सब्जियों के दाम मार्केट में बहुत अच्छे मिलते हैं इसके अतिरिक्त इन सब्जियों में पौष्टिक तत्व भी विद्यमान होने से इनकी मांग भी अधिक है।
राजेश का कहना है कि घर से बाहर नौकरी करने के बाबजूद भी उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं थी और अब घर पर सरकार की योजना का लाभ उठाकर जैविक खाद से उत्पादित सब्जियों के माध्यम से एक अच्छी आय अर्जित हो रही है जिससे उनके परिवार का निर्वाह बेहतर ढंग से चल रहा है।