ज्वालामुखी कालेज शिक्षा समिति के वजूद को लेकर सवाल

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ज्वालामुखी: डिग्री कालेज ज्वालामुखी को चलाने वाली शिक्षा समिति के वजूद को लेकर सवाल उठने लगे हैं । समिति जिस मकसद के लिए बनी थी वह तो पूरा नहीं हो पाया उल्टा इसका बोझ कालेज पर पड़ता जा रहा है । शिक्षा समिति की बैठके मात्र जलपान तक सीमित होकर रह गई हैं । मौटे तौर पर समिति का गठन करने का मकसद कालेज के लिए चन्दा उगाही करना था । ताकि लोगों के सहयोग से धन इकट्ठा होता ।

पिछले भाजपा शासनकाल में स्थानीय विधायक रमेश धवाला ने अपने राजनैतिक हित साधने के लिए मंदिर ट्रस्ट के सहयोग से कालेज खुलवाया तो इसके संचालन के लिए शिक्षा समिति बनाई गई । व तय किया गया कि समिति में नामित सदस्यों को एक योजना के तहत इलाके के लोगों व दानियों को रिझाना था, ताकि वह लोग खुलकर धन देते । उस समय ढलियारा के केशो दास कालेज की मिसाल रखी गई थी । बाद में कालेज की दशा व दिशा पर एक विस्तृत रपट अखवार की वेबसाईट पर देखकर प्रवासी भारतीय आई . डी. शर्मा ने पांच लाख रूपये का अनुदान दिया था । लेकिन यह सिलसिला यही थम गया ।

सरकारें आयीं व गयीं लेकिन कालेज के हालात नहीं बदले । यह आज भी मंिदर के रहमो करम पर चल रहा है। इस समय कांगड़ा के जिलाद्यीश समिति के अध्यक्ष हैं , लेकिन वह अपने राजनैतिक आकाओं को खुश करने के सिवा कुछ नहीं कर पाए हैं। कांग्रेस नेता संजय रतन का मानना है कि शैक्षणिक संस्थानों में राजनीति हावी रहे तो हालात नहीं सुधर सकते । जन सहयोग व गैर राजनैतिक नजरिये से ही लोगों से उदार आर्थिक सहायता ली जा सकती है । लेकिन सरकार के पास योजना होनी चाहिए ।

पंचायत समिति देहरा के वाईस चैयरमैन रमेश खौला ने दलील दी है कि मंदिर ट्रस्ट कालेज को धन दे रहा है तो समिति का वजूद अपने आप ही खत्म हो जाना चाहिए । चूंकि ट्रस्ट के ज्यादातर लोग ही समिति में हैं । उन्होंने हैरानी जताई है कि बिना किसी अकेडमिक अनुभव वाले लोग कैसे कालेज के बारे में सोच सकते हैं । कम से कम ऐसे लोग तो हों जो कालेज में पढ़े हों या पढ़ा चुके हों । उन्होंने कहा है कि ज्वालामुखी प्रसिद्घ तीर्थस्थल है जहां लोग आते हैं उन्हें कालेज के लिए धन देने के लिए प्रेरित किया जा सकता है । ओ. एन. जी. सी. व महिन्द्रा जैसी संस्थायें नगर में पुस्तकालय खोलने के लिए दिलचस्पी दिखा चुकी हैं । लेकिन उन्हें प्रयुत्तर नहीं दिया गया । वह मानते हैं कि जनता की भागीदारी के बिना तमाम प्रयास सफल नहीं हो सकते ।

गौरतलब है कि पिछले तीन चार सालों में कालेज के लिए शिक्षा समिति एक भी बैठक लोगों के साथ नहीं कर पाई है । कालेज जहां खोला गया है वहां पहले एग्रो इंडस्ट्रीज का मंडलीय कार्यालय था । जो अब बन्द हो गया है । जमीन व पुराना भवन कालेज को हस्तांरित हो चुका है । दिलचस्प तथ्य यह है कि मंदिर प्रशासन कालेज को अपनी आर्थिक मदद निरन्तर जारी रखने के आनाकानी कर रहा है । व वैकल्पिक प्रबन्ध करने की हिदायत दी जा चुकी है । कालेज का विस्तार होना अभी वाकी है ।