ज्वालामुखी मंदिर न्यास के लंगर का ठेका

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ज्वालामुखी: ज्वालामुखी मंदिर न्यास के एक फैसले को लेकर इन दिनों न केवल स्थानीय लोग ही नही बल्कि बाहर से आने वाले श्रद्घालू भी विरोध पर उतर आये हैं। जिससे मामला पेचीदा होता जा रहा है। दरअसल मंदिर न्यास ने मंदिर में लगने वाले लंगर को ठेके पर देने का फैसला ले लिया है। अब यहां काम करने वाले मंदिर के ही मजदूर व रसोईये बेकार हो गये हैं। कानूनी दाव पेंचों के चलते उन्हें आसानी से काम से तो नहीं हटाया जा सकता। यही वजह है कि यह लोग अब बिना काम के ही मंदिर से वेतन लेंगे। यही नहीं ताजा फैसले के मुताबिक मंदिर न्यास लंगर के लिये भोजन बनाने की एवज में ठेकेदार को सालाना लाखों रूपये का भुगतान करेगा।

यही वजह है कि इस अनोखे फैसले को कोई भी नहीं पचा पा रहा है। लेकिन इस मामले पर मंदिर अधिकारी सुदेश नैयर ने बताया कि इस बाबत उन्हें कांगडा के जिलाधीश का आदेश मिला उसे अमली जामा पहना दिया गया । साथ ही टरस्ट में भी सहमति बन गई थी। लेकिन मंिदर के पास काम करने वाले मजदूर होने के बावजूद ठेके पर काम करवाना कहां तक जायज है। इसका जवाब वह खुद देने के बजाये सलाह दे रहे हैं कि कांगडा के जिलाधीश आर एस गुप्ता से ही पूछा जाये।

काबिलेगौर है कि जब से यह काम ठेके पर दिया गया है उस दिन से सारी व्यवस्था चौपट होकर रह गई है। आये दिन यहां बनने वाले भोजन को लेकर ठेकेदार के करिंदों व आने श्रद्घालुओं के बीच कहा सुनी हो रही है। खाने वाले आरोप लगा रहे हैं कि बन रहा भोजन ठीक नहीं है। लेकिन मंदिर प्रशासन इस मामले पर कुछ नहीं कर पा रहा है। चूंकि ठेकेदार सत्तारूढ दल का एक पदाधिकारी है।

काबिलेगौर है कि मंदिर के लिये रोजाना इस्तेमाल होने वाला ही सामान लाखों रूपये में हर माह खरीदा जाता है। हालांकि यहां पर लगने वाले चावल को पंजाब का एक मिल मालिक अपनी ओर से देता है। मंदिर न्यास चावल नहीं खरीदता। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मंदिर न्यास को अपनी ओर से नगद पैसा देकर लंगर लगवाते हैं। जाहिर है। इन हालातों गडबड घोटाले की भी गुंजाईश बनती है।

कांग्रेस नेता पी सी सी डेलिगेट नरदेव कंवर ने आरोप लगाया कि मंदिर प्रशासन ने मात्र एक व्यक्ति विशेष को फायदा दिलाने की गरज से यह फैसला लिया है। जोकि किसी भी स्तर पर सराहा नहीं जा सकता।

ज्वालामुखी कांग्रेस के पूर्व ब्लाक अध्यक्ष अशोक गौतम का मानना है कि सरकार को धर्म कर्म के मामलों में दखल नहीं देना चाहिये। सालों से जो परंपरा चली आ रही थी उसे मात्र ऐ जिलाधीश या राजनेता के कहने से रातों रात उसे तोडा नहीं जा सकता। बकौल उनके मंदिरों के सरकारी करण के बाद किसी जिलाधीश की ओर से लिया गया पहला ऐसा फैसला जिसमें जन हित को नजरअंदाज कर व्यक्तिगत हितों को तरजीह दी गई। उन्होंने प्रदेश सरकार से अविलंब इस ठेके को रद् करने की मांग की है। इस मामले पर कांगडा के जिलाधीश से तमाम प्रयासों के बावजूद संपर्क नहीं हो पाया।