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तीन साल से लगातार विश्व के 2 फीसदी टॉप साइंटिस्ट में शुमार डॉ.पकंज अत्री

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सोलन: डॉ.पंकज अत्री ने विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है जिसके कारण 13 नवंबर को जापान में उन्हें यंग  रिसर्चर अवार्ड से नवाजा जा रहा है। यह न सिर्फ सिरमौर जिला बल्कि पूरे हिमाचल के लिए गौरव की बात है। सिरमौर जिला की पच्छाद तहसील के नैनाटिक्कर के समीप मछाड़ी गांव के डॉ. पंकज अत्री ने साबित कर दिया है कि परिश्रम व लग्न के आगे कोई भी कठिनाई नहीं टिकती है।

 क्यों आए डॉ. अत्री चर्चा में…

डॉ. पंकज अत्री यूं तो वल्र्ड साइंटिस्ट में एक जाना पहचाना नाम है। चार बार वह वल्र्ड के टॉप दो फीसदी वैज्ञानिकों की सूची में आ चुके हैं। वर्ष 2017, 2020 से2023 तक लगातार तीन वर्षों से वह इस सूची में हैं।  डॉ. अत्री को 13 नवंबर 2023 को संगठन का एशिया पेसिफिक फिजिकल सोसाइटी (एएपीपीएस)-डिवीज़न ऑफ़ प्लाजमा फिजिक्स(डीपीपी) यंग रिसर्चर अवार्ड (अंडर-40) के लिए हुआ है। डिविजन ऑफ एप्लाइड प्लाजमा फीजिक्स में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें यह पुरस्कार मिलेगा। इसकी हाल ही में घोषणा की गई है। इससे  पिता जगदीश शर्मा, छोटे भाई अंकित अत्री और बहन निताशा अत्री खुश हैं और उसकी मेहनत व लग्न की प्रशंसा करते हैं। अब तक डॉ. पकंज के 130 पब्लिकेशन, 10 बुक चैप्टर और 7 पेटेंट हैं।

dr pankaj

 जन्म और शिक्षा

 डॉ.पकंज अत्री का जन्म हरियाणा के कालका में 9 मार्च 1983 को जगदीश शर्मा के घर हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी स्कूल नाहन से हुई। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उनका दाखिला नाहन के ब्वॉयज सीनियर सेकंडरी स्कूल नाहन में  हुआ। वह नॉन मेडिकल विषय के छात्र थे। जमा दो के बाद डिग्री कॉलेज नाहन बीएससी की। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसएससी में प्रवेश लिया। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी की वर्ष 2013 में।

 पीएचडी के बाद साउथ कोरिया, जापान और बैल्जियम

 पंकज अत्री की पीएचडी कंपलीट होने के बाद उनका चयन साउथ कोरिया की कांगून यूनिवर्सिटी में सहायक प्राध्यपक के रुप में हुआ। यहां सेवाकाल के दौरान उनका चयन जापान की सम्मानजनक फैलोशिप जेएसपीएस के लिए 2016 में हुआ। उनका चयन जापान की टॉप छटी और विश्व की 120 से 130 रैंक वाली क्यूशू यूनिवर्सिटी के लिए हुआ। उनकी रिसर्च लगातार नए आयाम छू रही थी। एक साल बाद ही वर्ष 2017 में उन्हें बैल्जियम की प्रतिष्ठित मैरी क्यूरी फैलोशिप फॉर यूरोपियन यूनिवर्सिटी मिली। वहां से दो साल के लिए बैल्जियम चले गए। उनकी शोध एप्लाइड प्लाजमा का उपयोग कैंसर की लाइलाज बीमारी में भी होता है। दो साल की फैलोशिप कंपलीट करने के बाद वह दोबारा जापान की क्यूशू यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। वर्तमान में वह इसी यूविवर्सिटी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

 आगे क्या…

 डॉ.पंकज अत्री ने बताया कि उनके कई पेटेंट हैं। एक पेटेंट पर यूरोनियन कंपनी से बातचीत चली है। उन्होंने बिना कैमीकल के फर्टीलाइजर तैयार किया है। यूरोप के लोग इसको लेकर उत्साहित हैं। हिमाचल सरकार की भी नैचुरल फार्मिंग में यह फर्टीलाइजर काम आ सकता है। जैसे हम यूरिया या कैन का इस्तेमाल करते हैं तो इसमें कैमिकल होता है। उनकी रिसर्च में जो फर्टीलाइजर होगा उससे खेतों में नाइट्रोजन की मात्रा में 40 से 50 फीसदी तक की  वृद्धि होगी। यदि सरकार चाहेगी तो वह भारत को भी यह तकनीक दे सकते हैं। इसके अलावा उनके शोध जारी है।