पांवटा साहिब (सुभाष चन्द्र शर्मा): दून घाटी के उपमण्डल पांवटा साहिब का गिरिपार में आंजभोज एक क्षेत्र है जिसमें डांडा पागर, अम्बोया, राजपुर, नघेता, डांडा आंज, बढ़ाणा, शिवा तथा बनौर आठ पंचायतें पड़ती हैं। यह ग्राम पंचायतें आपसी सौहार्दपूर्ण माहौल के लिए जानी जाती हैं। यह ग्राम पंचायतें धौलागिरि पर्वत के दूर तक फैले आंचल में बसी हुई है। इसी पर्वत शिखर पर राजपुरा के ठीक उपर पर्वत शिखर पर गुरासा आश्रम स्थित है जहां सैंकड़ों वर्षों से सिद्ध महात्माओं द्वारा पूजा की जाती है।
इस आश्रम का संचालन 105 वर्षीय स्वामी पूर्णानन्द जी कर रहे हैं जिन्होंने अपने कठिन तपोबल से इस स्थान में दिव्यता व आलौकिकता की महक पैदा कर दी है। स्वामी जी लगभग 57 वर्ष पूर्व कुल्लू क्षेत्र से श्री रेणुका जी, पांवटा साहिब, भंगाणी साहिब, सहस्त्रधारा से होते हुए यहां पहुंचे। स्वामी जी बताते हैं कि यहां पर पहुंचकर यहां के क्षेत्र में उन्हें सकारात्मक तरंगों का आभास हुआ जिससे उन्होंने इस स्थान को अपनी तपोस्थली के लिए उचित समझा। स्वामी जी बताते हैं कि इस स्थान पर सदियों से सिद्ध महात्माओं ने तपस्या की है इन तपस्वियों में एक नाम नाथ पंत के प्रणेता रहे गुरू गोरक्षनाथ जी के औजस्वी तथा तपस्वी शिष्य बाबा माड़ु सिद्ध का भी है। इन्हें दूध-पूत के दाता के रूप में पूजा जाता रहा है।
स्वामी पूर्णानन्द जी के आश्रम से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर एक प्राचीन गुफा देखी जा सकती है जिसमें हवन कुण्ड भी बना हुआ है। बारह वर्ष इन्होंने इस गुफा में भगवान शिव की तपस्या की। इस तपस्या से भी जब इनका मन नहीं भरा तो पुनः इन्होंने आठ वर्ष ततक भोलेनाथ की तपस्या की। स्वामी जी बताते हैं कि इस तपोस्थली पर कण-कण में भगवान शिव का प्रभाव व चमत्कार देखा जा सकता है।
समय बीतने पर स्वामी जी ने यहां मंदिरों का निर्माण कार्य शुरू किया। यहां पर वैष्णों माता मंदिर, सूर्य नारायण मंदिर, हनुमान मंदिर व शिव मंदिर विशेष आकर्षक हैं। लगभग तीन बिघे जमीन में चारों ओर मनमोहक हरियाली है। साफ मौसम में यहां से देहरादून, विकास नगर, पांवटा साहिब के मनमोहक दृश्य देखे जा सकते हैं।
प्रायः हर रविवार व सोमवार को यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आकर स्वयं को धन्य समझते हैं। माघ व श्रावण मास में तो यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। शिवरात्री पर तो श्रद्धालुओं की बड़ी-बड़ी लाईनें लगती है।
स्वामी पूर्णानन्द जी की केवल एक यही तपोस्थली नहीं है इन्होंने महादेव मंदिर औजवाला, सुईनल के कालीमंदिर माशु च्योग, मात्रा देवी मंदिर, विक्रमबाग, मशुवा के परशुराम मंदिर, काण्डो मटनोल के पूर्णेश्वर महादेवी मंदिर, बगलामुखी तथा कालेश्वर महादेव मंदिर सहस्त्रधारा, बढवास के महादेवी मंदिर, कफोटा के आशुतोष मंदिर में भी इन्होंने तपस्या की तथा इन आस्था स्थलियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
यहां आने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि यहां कि मिट्टी में सुगंध है तथा संभवतः हमारे प्राचीन पुराणों में वर्णित धौलागिरी पर्वत की आभा यहीं पर है। इस पूरे पर्वत क्षेत्र में से औषधीय पानी के झरने निरन्तर बहते रहते हैं जो इस क्षेत्र की आठ ग्राम पंचायतों की भूमि को सिंचित करके यहां की आर्थिक समृद्धि में अपना योगदान द रहे हैं।