नाहन: नाहन शहर नगीना आए एक दिन लगे महीना यह कहावत अब नाहन शहर के लिए एक अतीत का पन्ना बन चुकी है क्योंकि अब नाहन शहर धीरे-धीरे अपनी ऐतिहासिक पहचान खोने लगा है। 390 साल पहले स्थापित यह शहर उत्तर भारत के चुनिंदा कस्बों में शुमार था लेकिन राजनीतिक उपेक्षा व शहरवासियों के शांत स्वभाव के कारण यह शहर विकास को लेकर अनदेखी का शिकार है। पर्यटन के लिहाज से शहर की दर्जनों ऐतिहासिक इमारतें, जलवायु, बिला राउंड, शांति संगम व रानीताल बाग विकसित हो सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 1889 में निर्मित रानीताल बाग को सौंदर्यकरण का इंतजार है तो 1875 में स्थापित नाहन फाउंड्री का वजूद समाप्त हो चुका है। तालाबों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है।
नाहन शहर की स्थापना 1621 में राजा कर्म प्रकाश द्वारा बाबा बनवारी दास जी के आर्षीवाद से की गई। नाहन शहर प्राचीन मंदिरों, तालाबों, जलवायु व सैरगाहों, हैरिटेज भवनों के अलावा सफाई व्यवस्था के लिए जाना जाता था लेकिन अब सिथति बिलकुल विपरित है। राज घराने के सदस्य व पूर्व विधायक कंवर अजय बहादूर का कहना है कि नाहन शहर 1621 में महाराजा कर्म प्रकाष ने बाबा बनवारी दास के आर्षीवाद से स्थापित किया था तथा समय के साथ-साथ इसमें प्रगति होती रही जिसके कारण नाहन शहर तरक्की करता रहा। महाराजा कर्म प्रकाष द्वारा नाहन फाउंड्री तथा बिरोजा फैक्टरी के साथ-साथ नाहन के विकास के लिए कई विकासानात्मक कार्य होते रहे जो अपने आप में एक मिसाल रखती थी लेकिन अब बडे अफसोस की बात है कि नाहन शहर अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। उन्होंने कहा कि शहर की संुदरता को बढाने वाले हरे-भरे पेडों को काटा जा रहा है, जिससे शहर का वातावरण भी बदलता जा रहा है। कंवर अजय बहादूर ने कहा कि यहां कि जो इंटेक संस्था है जो यहां के भवनों को देखती है उन्होंने भी 12 भवनों को चिंहीत किया हुआ है जो बडे ऐतिहासिक व अपने आप में एक अनूठे रूप में जो कहीं पर भी नहीं देखी जाती जासे आज जर्जर हालत में है।
नागरिक सभा के अध्यक्ष दिग्विजय गुप्ता का कहना है कि 1947 के बाद नाहन शहर राजनीतिक अनदेखी का षिकार होता जा रहा है जो शहर आजादी से पहले हुआ करता था जो वही शहर दिन प्रतिदिन अपनी ऐतिहासिकता व सौंदर्यकरण खोता जा रहा है जो एक चिंतनीय बात है। उन्होंने बताया कि जो विकास राजाओं के समय में हुआ था आज वो पूरी तरह से ठप पडा हुआ है चाहे आप नाहन फाउंड्री व बिरोजा फैक्टरी के अलावा सीवरेज व्यवस्था इसका जीता जागता उदाहरण है।
गुप्ता ने कहा कि नाहन फाउंड्री व बिरोजा फैक्टरी में लोगों को रोजगार मुहैया करवाया जाता था लेकिन फाउंड्री बंद हो जाने के कारण लोगों का रोजगार छीन गया है तथा बिरोजा फैक्टरी के हालात बद बदतर होते जा रहे है जिसका कारण राजनीतिक दखल अंदाजी के कारण यह समस्या हो रही है। उन्होंने कहा कि नाहन हैरिटेज चीजें भी राजनीतिक दखल अंदाजी का कारण बनती जा रही है। समाज सेवी व पर्यावरण समिति के उपाध्यक्ष सत्येंद्र ठाकुर का कहना है कि बाजार में जो राजाओं के समय में चक्के बिछाए गए थे आज वे चक्के हटा कर उन्हें पक्का कर दिया गया है तथा लोगों द्वारा उस पक्के रास्ते को तोडा जाता है लेकिन उसे ठीक करने की जहमत कोई नहीं उठाता जिससे आए दिन कहीं न कहीं यह रास्ता टूटा-फुटा रहता है। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि नाहन के ऐतिहासिक भवनों को संवारा जाए, जिससे यहां पर्यटकों की आमद बढ सके।