गुवाहाटी: असम के एक नागरिक संगठन, पैट्रियोटिक पीपल्स फ्रंट असम (PPFA) ने नेली नरसंहार से जुड़ी रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने के असम सरकार के फैसले का स्वागत किया है। संगठन ने कहा है कि 1983 में हुई इस भयावह घटना की वास्तविक सच्चाई अब देश के सामने आनी ही चाहिए।
संगठन ने यह भी मांग की है कि असमिया समाज को ‘मुस्लिम-विरोधी’ बताने की किसी भी साजिश को नाकाम किया जाए और तथ्यों के आधार पर वर्षों से गढ़ी जा रही नकारात्मक छवि को मिटाया जाए।

ज्ञात हो कि 18 फरवरी 1983 को राज्य के नेली क्षेत्र में हुआ यह नरसंहार दुनिया के सबसे भीषण जनसंहारों में गिना जाता है। रिपोर्टों के मुताबिक, इसमें 2,000 से अधिक बांग्लादेश मूल के मुस्लिम मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। PPFA का कहना है कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस त्रासदी को प्रमुखता से दिखाया, लेकिन शायद ही किसी रिपोर्ट में यह उल्लेख हुआ कि इस हिंसा के दौरान जवाबी कार्रवाई में हमलावर पक्ष (स्थानीय जनजातीय और असमिया समुदाय) के लोग भी मारे गए थे।
PPFA ने अपने बयान में इस पूरी घटना को लेकर कई बुनियादी सवाल भी उठाए हैं। संगठन ने पूछा कि इन हत्याओं में कौन-से हथियार इस्तेमाल किए गए थे? क्या बिना किसी आधुनिक हथियार के स्थानीय लोग कुछ ही घंटों में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को मार सकते थे? यदि मृतक मुस्लिम समुदाय से थे, तो उन्हें कहाँ दफनाया गया? क्या नेली क्षेत्र में सामूहिक कब्रों का कोई प्रमाण मिला है?
संगठन का मानना है कि तेवारी आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना इस पूरे घटनाक्रम की वास्तविकता को समझने की दिशा में एक अहम कदम होगा। PPFA का कहना है कि इससे न केवल ऐतिहासिक सच्चाई सामने आएगी, बल्कि उन भ्रांतियों और राजनीतिक कथाओं का भी अंत होगा, जिनके जरिए असमिया समाज को दोषी ठहराने की कोशिशें की जाती रही हैं।