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पारिस्थितिकीय पर्यटन के विकास में हिमाचल की सहायता करें: मुख्यमंत्री

शिमला: मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री श्री जयराम रमेश से आग्रह किया है कि वे राज्य के हित में और वन संपदा के संरक्षण के लिए प्रदेश में इको-टूरिज़्म गतिविधियांे को आगे बढ़ाने में सहयोग प्रदान करें। केन्द्रीय मंत्री को लिखे एक पत्र में उन्होंने आग्रह किया है कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 को या तो वापिस लिया जाए या उसमें आवश्यक संशोधन किए जाएं और पारिस्थितिकीय पर्यटन को इसमें वन हित गतिविधि के रूप में शामिल किया जाए।

मुख्यमंत्री ने पत्र मंे लिखा है कि पारिस्थितिकीय पर्यटन को विश्व स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है और यह समग्र वन प्रबंधन की कुंजी भी है। उन्होंने कहा कि पारिस्थितिकीय पर्यटन के माध्यम से न केवल वनों का संरक्षण सुनिश्चित बनाया जा सकता है, बल्कि यह स्थानीय ग्रामवासियों को आर्थिक लाभ भी प्रदान करता है। इको-टूरिज़्म के माध्यम से वन सुरक्षित रहते हैं और वनों के माध्यम से ही स्थानीय समुदायों को लाभ प्रदान किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इको-टूरिज़्म पर ध्यान इसलिए केन्द्रित किया जा रहा है, ताकि प्रकृति के बारे में लोगों को जागरुक बनाया जा सके, वन्य प्राणियों और जैव विविधता के महत्व को उभारा जा सके, स्थानीय समुदायों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार प्रदान किया जा सके और वन संरक्षण में उनकी सहभागिता सुनिश्चित बनाई जा सके। इस प्रकार वनों का संरक्षण निश्चित होता है। उन्होंने कहा कि पूर्व में स्थानीय समुदाय अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर रहते थे, जिस कारण वनों को नुकसान पहुंचता था। इस प्रवृत्ति पर कानून बनाकर अंकुश लगाया गया है, किन्तु इसे स्थानीय समुदायों एवं वनों के मध्य ऐसे सहयोग के माध्यम से बदलने की आवश्यकता है, जिससे वन भी संरक्षित रह सके और स्थानीय समुदायों का नुकसान भी न हो।

प्रो. धूमल ने पत्र में लिखा है कि हिमाचल प्रदेश संभवतः देश का ऐसा पहला राज्य है जहां वृहद् पारिस्थितिकीय पर्यटन नीति 2001 तैयार कर अधिसूचित की गयी और जिसे वर्ष 2005 में पुनः परिष्कृत किया गया, सार्वजनिक निजी सहभागिता को इस क्षेत्र में बढ़ावा दिया गया, संरक्षण के सभी मुद्दों पर ध्यान दिया गया और पक्की अधोसंरचना को सीमित करने, ठोस कचरा प्रबंधन उपाय अपनाने, वनों को आग से बचाने के उपाय अपनाने और अन्य उपाय अपनाने पर बल दिया गया, ताकि सामान्य पर्यटन के दुष्प्रभाव वनों तक न पहुंचे। उन्होंने कहा कि इस नीति को आधार बनाकर राज्य सरकार वनों में इको-टूरिज़्म को बढ़ावा दे रही है, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं और निजी क्षेत्र, पर्यटक तथा स्थानीय समुदाय इसमें भागीदार बन रहे हैं, क्योंकि प्रदेश का 67 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वनों के रूप में वर्गीकृत है तथा प्रदेश में पर्यटन क्षेत्र का भविष्य इको-टूरिज़्म पर ही निर्भर है। देश के सभी पहाड़ी राज्यों में आने वाले समय में पर्यटन इको-टूरिज़्म के रूप में ही उभर कर सामने आएगा।