शिमला: उत्तर भारत की सबसे बड़ी मानव निर्मित वेटलैंड महाराणा प्रताप सागर डैम, जो पौग डैम के नाम से मशहूर है, में इस साल लगभग 1.30 लाख मेहमान पक्षियों का आगमन हो चुका है। साईबेरिया तथा सेंट्रल एशिया की लगभग 90 प्रजातियों के यह पक्षी इस वर्ष अक्तूबर माह में पौंग डैम झील में पहुंचने शुरू हो गए थे तथा इस साल मार्च के अंत तक इस झील में रहेंगे। इन पक्षियों की अधिकतक संख्या 1.5 लाख तक पहुंच सकती है क्योंकि सर्दियों में झील के पानी का स्तही तापमान 20 डिग्री से 40 डिग्री तक रिकार्ड किया जाता है, जिसमें यह मेहमान पक्षी सर्वाधिक आरामदायक महसूस करते हैं।
कांगड़ा जिला के नूरपुर तथा देहरा वन मण्डलों के अन्तर्गत 307 किलोमीटर लम्बी यह पक्षी विहार, देश भर में मेहमान पक्षियों का पसंदीदा स्थल माना जाता है। समुद्र तल में 1450 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस विहार को स्पेन में वर्ष 2002 में आयोजित पर्यावरणविदों के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में रामसीर साईट का दर्जा दिया गया है। लगभग 180 किलोमीटर के बीच क्षेत्र में फैलने वाली इस झील में इस साल कुल 2.5 लाख भारतीय तथा विदेशी पक्षी रिकार्ड किये गए हैं, जिनमें अनेक दुर्लभ प्रजातियों के पक्षी सम्मिलित हैं। पौंग वेट लैंड में भारत में विद्यमान पक्षियों की कुल 77 प्रजातियों में से 54 प्रजातियों की 230 उपजातियां पाई जाती हैं।
मेहमान पक्षियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने के लिए सर्दियों में सुरक्षा की दृष्टि से चौकसी बढ़ा दी जाती है। इनके अवैध शिकार न हो इसके लिए स्वयंसेवकों की सेवाएं ली जाती हैं तथा स्टाफ को अधिकतम सर्तक करके रात्रि को छापे मारे जाते हैं। वन विभाग ने नगरोटा सूरियां में एक अलग वन थाना स्थापित किया है, जोकि पक्षियों के अवैध शिकार के मामलों से निपटने में प्रभावी काम करता है।
पौंग डैम झील भारत की जैविक विविधता को केन्द्र बिन्दू माना जाता है तथा पर्यटकों के लिए पक्षियों को निहारने, नौकायन, मछली पकड़ना का मुख्य आकर्षण बन कर उभरा है। इस झील में पिछले वर्ष की शरद ऋतु में दिसम्बर से मार्च माह तक लगभग 15,000 प्रकृति प्रेमी पर्यटकों ने दौरा किया, जबकि इस साल इनकी संख्या बढ़कर 25,000 तक पहुंचने को आया है।
राज्य के पर्यटन निदेशक डॉ. अरूण शर्मा के अनुसार पौंग डैम झील की पर्यटन क्षमताओं के दोहन के लिए एशियन विकास बैंक वित्तीय सहायता से 10.39 करोड़ रुपये का पर्यटन सरंचनागत झील में आने वाली 36 दुर्लभ प्रजातियों को आश्रय देने के लिए कृत्रिम द्वीपों को भी विकसित किया गया है।