फूलों ने महक ने लाई जितेंद्र के जीवन में बहार

ज्वालामुखी : मनुष्य में यदि दृढ़ इच्छाशक्ति एवं कुछ करने का ज़ज्बा हो, तो इंद्रप्रस्थ कहीं भी बसाया जा सकता है। ऐसी ही एक कहानी है, गगल के समीप गांव बगली में रहने वाले एक प्रगतिशील किसान, जितेन्द्र की। अपने जीवन में आजीविका के लिये विभिन्न आयाम तलाशने पर, जब निराशा ही हाथ लगी, तब उन्होंने अपने बचपन के फूलों के शौक को सार्थक बनाने के लिये लगभाग 8 वर्ष पूर्व चैतड़ू-बगली सड़क पर अपनी पुश्तैनी भूमि पर न्यू होप लावर नर्सरी के नाम से फूलों की नर्सरी का कार्य आरम्भ कर दिया और आज यह नर्सरी राहगीरों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है तथा फूलों की महक उन्हें नर्सरी को देख्नने के लिये मजबूर करती है।

उल्लेखनीय है कि 45 वर्षीय जितेन्द्र ने वर्ष 1983 में हायर स्कैंडरी उत्तीर्ण करने के उपरान्त सरकारी नौकरी की तलाश के लिये किये गये अथक प्रयासों के फलस्वरूप इन्हें स्थानीय डाकघर में विलेज़पोस्टमास्टर की अस्थाई नौकरी मिल गई, परन्तु संयुक्त परिवार की बढ़ती जिम्मेदारियों को देखते हुए नौकरी से मिलने वाला मानदेय बहुत कम था, जिससे परिवार का पालन-पोषण करना बहुत कठिन था। इन्होंने नौकरी के साथ-साथ ओबीसी वित्त एवं विकास निगम से ऋण लेकर ट्रैक्टर ारीद कर अपनी आर्थिकी को मजबूत करने का प्रयास किया, परन्तु उन्हें आशानुकूल सफलता नहीं मिल पाईं और परिस्थितियां जस की तस बनी रहीं।

विभिन्न व्यवसाय करने के उपरान्त एक दिन निराश होकर जितेन्द्र जब अपने बरामदे में खाट पर बैठे-बैठे जीवन में कुछ नया कार्य करने पर गंम्भीर चिन्तन कर रहे थे, तो एकाएक उनके ध्यान में आया कि फूलों के प्रति बचपन के शौक को ही व्यवसाय का रूप क्यों न दिया जाए। उन्होंने विलेज़ पोस्टमास्टर की नौकरी को तिलांजलि देकर पुश्तैनी पांच कनाल भूमि में गेंदा प्रजाति के फूलों की खेती आरम्भ कर दी तथा उन्होंने तकनीकी सलाह के लिये उद्यान विभाग, धर्मशाला के विशेषज्ञों से सम्पर्क किया और विभाग द्वारा तकनीकी सलाह देने के साथ-साथ पॉलीहाउस लगाने के लिये आठ हजार रूपये का अनुदान भी दिया। इसके अतिरिक्त नर्सरी के लिये जैविक खाद तैयार करने के लिये उन्होंने कृषि विभाग से 15 हजार रूपये का अनुदान भी प्राप्त किया।

गेंदा प्रजाति के फूलों की खेती से जब जितेन्द्र को उचित दाम मिलने लगे तब उन्होंने बाज़ारी मांग के मध्यनजऱ रखते हुए विभिन्न प्रजातियों के फूलों का उत्पादन शुरू करके अपने व्यवसाय का विस्तार करना आरम्भ कर दिया और आज जितेन्द्र की 15 कनाल में फैली नर्सरी में लगभग 500 प्रजातियों के फूल महक रहे हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपनी नर्सरी में फलदार पौधों तथा विभिन्न प्रकार की हरी सब्जियों की पौध भी उगानी शुरू कर दी।

एक साक्षात्कार में जितेन्द्र ने बताया कि फूलों के विपणन के लिये उन्हें कहीं भी नहीं जाना पड़ता है, बल्कि नर्सरी में ग्राहक स्वयं आकर फूलों को खरीद कर ले जाते हैं। शादी-विवाह अथवा अन्य सामाजिक समारोहों के उपलक्ष्य पर फूलों की अत्याधिक मांग बढऩे पर दाम भी अच्छे प्राप्त होते हैं। वर्तमान में सभी नर्सरी के खर्चे के अतिरिक्त जितेन्द्र को लगभग 50 हजार रूपये प्रतिमाह का शुद्घ लाभ मिल रहा है, जिससे अपने एवं भाइयों के परिवार के पालन-पोषण तथा रोज़मर्रा की आवश्यकताएं आसानी से पूरी हो रही हैं। उन्होंने बताया कि वह परिवार में चार भाइयों में सबसे बड़े हैं तथा उन्होंने सभी भाइयों को इसी व्यवसाय में शामिल कर संयुक्त परिवार के महत्व को बढ़ाया है। उन्होंने बताया कि अब वह 50 कनाल भूमि में धान की हाइब्रिड पनीरी तैयार करने जा रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र में धान के उत्पादन को एक नई दिशा मिलेगी।

जितेन्द्र उन बेरोजग़ार युवाओं के लिये एक प्रेरणास्रोत बन गये हैं जो उच्चतम शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त भी नौकरी के लिये दर-दर ठोकरें खा रहे हैं। इनका कहना है कि बेरोजग़ार युवाओं को स्वावल बी बनने के लिये नौकरी की तलाश की अपेक्षा सरकार द्वारा चलाये जा रहे अनेक स्वरोजग़ार कार्यक्रमों को रूचिनुरूप अपनाकर इनका लाभ उठाना चाहिए।