भारत ने रोके करमापा के अमेरिका जाने के रास्ते

धर्मशाला: ऐन आखिरी वक्त पर भारत सरकार ने तिब्बतियों के धर्मगुरू सत्रहवें करामापा उगयेन त्रिनले दोरजी के अमेरिका दौरे को रद् करवा कर एक बार फिर इस मामले पर नयी बहस को जन्म दे दिया है। इस मामले पर अभी तक कोई बात सामने नहीं आ पाई है कि भारत सरकार ने आखिर क्यों उन्हें अमेरिका जाने की अनुमति नहीं दी। मेक्लोडगंज में भारत सरकार के लायसन अधिकारी ने भी इस मामले पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया है।

अचानक घटे इस घनाक्रम के बाद अधिकारिक तौर पर तिब्बत की निर्वासित सरकार कुछ भी बोलने से कतरा रही है। लेकिन करमापा के सचिव गोंपो सेरिंग ने बताया कि करमापा को अपने प्रस्तावित दौरे के दौरान न्यूयार्क के वुडस्टाक में धर्मचक्र केन्द्र में उन्हें एक प्रार्थना सभा में भाग लेना था। लेकिन भारत सरकार ने उन्हें अमेरिका जाने की अनुमति नहीं दी। बकौल उनके हमारे समझ में नहीं आ पाया है कि करमापा पर नये प्रतिबंध क्यों लगा दिये गये हैं। उनका दौरा तो पूरी तरह से धार्मिक ही था। बीते साल भी करमापा को नौ यूरोपिय देशों पर जाने की अनुमति दी गई थी। गौरतलब है कि करमापा चीन से भाग कर आने के बाद से धर्मशाला के पास सिद्घबाडी के ग्यूतो तात्रिंक मठ में रहने वाले शुरू से विवादों में रहे हैं। हालांकि वह दलाई लामा के बाद तिब्बतियों के तीसरे बडे धार्मिक नेता हैँ। वह तिब्बत से भागकर भारत आये व उन्हें दलाई लामा व चीन की सरकार ने सोलहवें करमापा के अवतार के तौर पर मान्यता दी है। लेकिन भारत हमेशा ही उन्हें शक की निगाह से देखता रहा है।

भारत सरकार ने करामापा को पहले ही धर्मगुरू मानने से इंकार करते हुये उन्हें प्रदान की जा रही तमाम सुविधायें वापिस ले ली थीं। निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री सोमदोंग रिन्पोचे ने कहा कि तिब्बतियों के काग्यू संप्रदाय के के प्रमुख धर्मगुरू करमापा ही हैं। वह सबके सम्मानीय रहे हैं। आगे भी उनके सम्मान में कोई कमी नहीं रखी जायेगी। दलाई लामा के बाद दूसरे सम्मानीय व पूजनीय होने के नाते भारत सरकार की ओर से उन्हें लंबे समय से सरकारी तौर पर सुविधायें मिल रहीं थीं । बताया जा रहा है कि चीन से अपने रिस्तों में किसी भी प्रकार की तनातनी नहीं चाहता लिहाजा तिब्बत मामलें में भारत ने यह सब इन्ही रिस्तों को देखते हुये यह फैसला लिया होगा।