मंडी: गर्मियों के मौसम में वनों में आग लगने की बढ़ती संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए सोमवार को उपायुक्त मंडी अपूर्व देवगन की अध्यक्षता में जिला मुख्यालय में एक उच्च स्तरीय बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में वनों में आग की संभावनाओं और उससे निपटने की रणनीतियों पर विस्तृत चर्चा की गई।

बैठक में वन, राजस्व, आपदा प्रबंधन, अग्निशमन, लोक निर्माण, जल शक्ति, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, कृषि और बागवानी विभागों के अधिकारियों ने भाग लिया। उपायुक्त ने कहा कि बैठक का मुख्य उद्देश्य वनों को आग से बचाने के लिए की गई तैयारियों की समीक्षा करना और विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय को मजबूत करना है। उन्होंने कहा कि वनों की रक्षा हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। सभी अधिकारी अपने-अपने क्षेत्रों में तत्परता से निगरानी रखें और स्थानीय जनभागीदारी के माध्यम से वनों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
इस दौरान उपायुक्त ने जंगलों में चीड़ की पत्तियों की सफाई, अत्यधिक संवेदनशील जंगल क्षेत्रों में फायर लाइन (आग की रोकथाम के लिए खाली पट्टी) का निर्माण, जल संग्रहण के लिए मनरेगा सेल्फ, फायर हाइड्रैंट, सतर्कता दलों का गठन, स्थानीय भागीदारी के लिए ग्राम पंचायतों, स्वयंसेवी संगठनों को सक्रिय रूप से शामिल करने के लिए जागरूकता अभियान चलाने, आग की रोकथाम के लिए तकनीकी सहायता, वन मित्रों और सर्व स्वयंसेवियों को वन विभाग के साथ समन्वय स्थापित करने, जल संसाधनों का लेखा-जोखा तैयार करने की समीक्षा की।
बैठक में अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी डॉ. मदन कुमार और एक्सईएन जल शक्ति राज कुमार सैनी, लोक निर्माण डी.आर. चौहान सहित अन्य विभागों के अधिकारी उपस्थित रहे।
अधिकारी और कर्मचारी सहायता के लिए बाध्य
बैठक में उपायुक्त ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे फील्ड स्तर पर सजग रहें और आग की किसी भी घटना की सूचना मिलते ही तुरंत प्रभावी कदम उठाएं। उन्होंने कहा कि भारतीय वन अधिनियम की धारा 79 के अनुसार सरकार से वेतन पाने वाले सभी अधिकारी व कर्मचारी वनों को आग से बचाने तथा वन अपराध रोकने के लिए वन विभाग तथा पुलिस की सहायता के लिए बाध्य हैं।
जंगलों में आग लगाने पर सजा का है प्रावधान
उपायुक्त ने कहा कि वनों की आग से केवल पेड़ों को ही नहीं, बल्कि वन्य जीवों को भी भारी नुकसान होता है। आग लगने से अनेक छोटे-बड़े जीव-जंतुओं की अकाल मृत्यु हो जाती है और उनका प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाता है। उन्होंने कहा कि जंगल में आग लगाने पर भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26 व 33 के अनुसार पकडे़ जाने पर अपराधी को 2 साल का कारावास तथा 500 रुपये जुर्माना किया जा सकता है।