मेरा शरीर मेरा है|
जैसे चाहूँ, जिसको सौंपूँ!
हो कौन तुम-
मुझ पर लगाम लगाने वाले?
जब तुम नहीं हो मेरे
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?
पहले तुम तो होकर दिखाओ
समर्पित और वफादार,
मैं भी पतिव्रता, समर्पित
और प्राणप्रिय-
बनकर दिखाऊंगी|
अन्यथा-
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?
तुम्हारी ‘निरंकुश’ कामातुरता-
ही तो मुझे चंचल बनाती है|
मेरे काम को जगाती है, और
मुझे भी बराबरी का अहसास
दिलाने को तड़पाती है|
यदि समझ नहीं सकते-
मेरी तड़त का मतलब!
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?