ट्रिब्यूनल ने पीड़ितों के पक्ष से संतुष्ट होकर आदेश के लिए 15 फरवरी की तिथि की निश्चित
नाहन: महत्वकांक्षी रेणुका डैम परियोजना के लिए अपनी कृषि और गैर कृषि भूमि छोड़ने वाले इस क्षेत्र के चार गांव के 700 परिवारों के लिए अच्छी खबर है। केन्द्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उनकी दलील को स्वीकार करते हुए मुआवजे पर लगाए गए स्टे पर 15 फरवरी को अपना अंतरिम फैसला सुनाने का निर्णय किया है। स्टे समाप्त होने की सूरत में रेणुका क्षेत्र के लाणा मशूर, लाणा मच्छेर, यंूगर कांडो तथा धीर बग्गर के सैंकड़ों परिवारों को हिमाचल प्रदेश पावर कार्पोंशन से शीघ्र ही अपनी भूमि की एवज में लंबित मुआवजा मिलने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। यह जानकारी एम.पी. कंवर वरिष्ठ अधिवक्ता,जिला कोर्ट सोलन यहा जारी एक प्रैस विज्ञप्ति के माध्यम से दी |
रेणुका क्षेत्र के गांव लाणा मशूर, लाणा मच्छेर, यूंगर कांडो तथा धीर बग्गर के करीब सात सौ परिवारेां ने क्षेत्र के अन्य ग्रामीणों की तरह हिमाचल सरकार को रेणुका बांध के लिए अपनी करीब दो हजार भूमि दी थी। प्रदेश सरकार ने कलैक्टर के माध्यम से वर्ष 2008 में भूमि अधिग्रहण करने की कार्रवाई की और 2011 में यह कार्य संपन्न हुआ। इस लिहाज से जिन ग्रामीणों ने अपनी भूमि डैम के लिए दी थी उन्हें निर्धारित मुआवजा मिलना चाहिए था। किन्तु अधिगृहित भूमि में फारेस्ट क्लियरेंस को आपत्तिजनक बताकर इसे केन्द्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल में चुनौती प्रदान की गई लिहाजा ट्रिब्यून ने भूमि के मुआवजे पर रोक लगा दी।
इन चार गांव के लोगों ने ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए स्टे को अपने काउंसिल के माध्यम से चुनौती दी। गांव वालों के मामले की ट्रिब्यूनल में पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एम.पी. कंवर ने बताया कि चार दिसम्बर को दिल्ली में हुई सुनवाई के बाद ट्रिब्यूनल ने पीड़ितों के पक्ष से संतुष्ट होते हुए उचित आदेश पारित करने के लिए 15 फरवरी की तिथि तय की है। ट्रिब्यूनल ने आवेदनकर्ता के काउंसिल को जिस भूमि पर स्टे लगा है उसका सारा राजस्व रिकार्ड तथा एचपीसीएल ने जिन गांवों को पहले मुआवजा दे दिया है उसे भी रिकार्ड सहित प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं।
ट्रिब्यूनल द्वारा मुआवजे पर 4 दिसम्बर को की गई सुनवाई के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करते हुए अधिवक्ता एम.पी. कंवर ने बताया कि उक्त चार गांवों के लोगों ने अपनी कृषि और गैर कृषि भूमि सरकार को रेणुका डैम के लिए दे दी है और वह अपने मूल स्थान से विस्थापित हो गए हैं। उन्हें यदि मुआवजा नहीं मिलता है तो उन्हें अपना जीवन यापन करना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि अधिकतर ग्रामीणों की आय का साधन भूमि और उस पर पैदा होने वाला अन्न और अन्य उत्पाद था। भूमि पर मिलने वाले मुआवजे के दृष्टिगत ग्रामीणों ने अपने जीवन यापन के कई लिए कई प्रकार के कर्जे भी लिए हैं, लिहाजा उन्हें वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने बताया कि केन्द्रीय ट्रिब्यूनल को भूमि अधिग्रहण के उपरांत किसानों को पेश आ रही गंभीर समस्याओं की जानकारी भी दी और बताया कि जब पनार, कल्याण और डंुगी कंडियूण के लोेगों को भूमि का मुआवजा मिल सकता है तो शेष अन्य लोगों को मुआवजा क्यों नहीं दिया जा रहा है। अधिवक्ता ने बताया कि भू अधिग्रहण के सैक्शन 23-एक-ए के तहत अधिगृहित भूमि पर यदि किसी प्रकार का स्टे लगता है तो स्टे की अवधि के दौरान भूमि देने वाले व्यक्ति को 12 प्रतिशत बाजार भाव से मिलने वाला ब्याज नहीं दिया जाएगा।
इस स्थिति में जहां गांव वालों को भूमि के मुआवजे में अनावश्यक विलंब होने से नुकसान होगा वहीं उन्हें स्टे के दौरान मुआवजे पर मिलने वाले ब्याज से भी वंचित होना पड़ रहा है। यही नहीं जिस भूमि का रेणुका डैम के लिए अधिग्रहण हुआ है वह हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कलैक्टर के माध्यम से अधिगृहित की गई है न कि हिमाचल प्रदेश पावर कार्पोशन द्वारा।