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रोजगार व पर्यावरण संरक्षण को समर्पित होगा ऊना का बैंबू विलेज

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ऊनाः लगभग चार करोड़ रुपए की लागत से जिला ऊना के घंडावल में बनने जा रहा उत्तर भारत का पहला बैंबू विलेज रोजगार तथा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उठाया गया सरकार का एक बड़ा कदम है। भारत में प्रति वर्ष 9.46 मिलियन टन पलास्टिक कचरे के रूप में निकलता है, जिसमें से एक बहुत बड़ा हिस्सा प्लास्टिक के टूथब्रश से है। हर साल लगभग 4.7 बिलियन टूथब्रश किसी समुद्र के तल या डंपिंग साइट पर पहुंचते हैं, जिन्हें गलने में 200 से 700 वर्ष का समय लगता है। जाहिर है यह पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक है।

ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कहा कि घंडावल में बनने जा रहा बैंबू विलेज पर्यावरण सुधार में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। जीवन के हर क्षेत्र में प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग पर्यावरण संतुलन के लिए आज एक बड़ी चुनौती है। बांस से बनने वाला फर्नीचर तथा अन्य उत्पादों के बनने से प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं के निर्माण तथा उपयोग में कमी लाई जा सकती है, जिससे पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि बैंबू विलेज का निर्माण केंद्र सरकार की परियोजना बैंबू मिशन के तहत किया जा रहा है।

बैंबू विलेज पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ क्षेत्र की 100 महिलाओं को प्रत्यक्ष तथा लगभग 1400 महिलाओं को परोक्ष रूप से रोजगार के अवसर प्रदान करेगा। चार करोड़ की इस परियोजना के कई हिस्से हैं। बैंबू विलेज में बांस के पौधों की नर्सरी, प्रसंस्करण इकाई, टूथब्रश तथा बांस के बोर्ड बनाने की इकाई, बैंबू ऑक्सीजन पार्क, सूचना केंद्र तथा एक बिक्री केंद्र का निर्माण किया जाना है। इस परियोजना को धरातल पर उतारने के लिए उपायुक्त ऊना की अध्यक्षता में एक परियोजना प्रबंधन समिति का गठन किया गया है, जिसमें परियोजना अधिकारी डीआरडीए , उप-निदेशक कृषि विभाग, महाप्रबंधक जिला उद्योग केंद्र तथा वन मंडल अधिकारी को उनके विभागों से संबंधित प्रमुख दायित्व सौंपा गया है। 

उपायुक्त ऊना राघव शर्मा ने कहा कि इस परियोजना के तहत प्रशिक्षण, प्रबंधन तथा मार्गदर्शन बैंबू इंडिया एनजीओ कर रही है। परियोजना का संचालन स्वां विमिन फेडरेशन के माध्यम के किया जाना है, जिसके तहत स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं प्रशिक्षण के उपरांत बांस से बनने वाली विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करेंगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए उद्योग विभाग, बैंबू इंडिया तथा स्वां विमिन फेडरेशन के लिए एक समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किया गया है। 

बांस की प्रसंस्करण इकाई लगभग 45.60 लाख रुपए की लागत से तैयार की जाएगी, जबकि बांस के टूथब्रश बनाने की इकाई 22 लाख तथा बोर्ड बनाने की इकाई 18 लाख रुपए की लागत से लगाई जाएगी। परियोजना के तहत क्षेत्र के किसानों को बांस की खेती करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है तथा उन्हें आर्थिक मदद भी जा रही है। बैंबू विलेज परियोजना में बांस से बनने वाली वस्तुओं का उत्पादन होगा, इसलिए परियोजना के तहत जिला के विभिन्न क्षेत्रों में बांस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि बांस की उन्नत किस्मों की पैदावार के जरिए किसानों की आय में बढ़ौती की जा सके। कृषि विभाग ने मलाहत, बहली मोहल्ला, कैलाश नगर, डंगोह, बडेरा, नंगल खुर्द, लडोली, बुद्धान, तथा डोहक इत्यादि गांवों में लगभग 10 हेक्टेयर निजी भूमि में 50% अनुदान पर 10 हजार बांस के पौधे लगवाए हैं। चालू वित्त वर्ष में भी विभाग ऊना जिला में 50% अनुदान पर 5000 बांस के पौधे लगा रहा है।

डीएफओ मृत्युंजय माधव ने कहा कि वन विभाग ऊना लगभग 57 लाख रुपए की लागत से बांस की नर्सरी, बांस की विभिन्न किस्मों के प्लॉट, वाकिंग ट्रेल, बैठने के लिए सुंदर बेंच, थीम आधारित सेल्फी दीवार, सोलर लाइटें, तालाब, खुले में बैठने का स्थान तथा बच्चों के लिए अलग से आकर्षक स्थल निर्मित करेगा। उन्होंने कहा कि इनके बनने के उपरांत यह स्थल पर्यटकों, प्रकृति प्रेमियों तथा पर्यावरण एवं वानिकी के क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण कर रहे शिक्षार्थियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होगा।

बैंबू विलेज के निर्माण लगभग तीन माह में होना प्रस्तावित है। बनने के बाद इसे स्वां विमिन फेडरेशन के माध्यम से संचालित किया जाएगा तथा मार्केटिंग का कार्य बैंबू इंडिया करेगी।