नाहन: पूरे हिमाचल प्रदेश से लुप्त हुई गिद्द से पर्यावरण पर इसका असर साफ दिखाई दे रहा है। धीरे-2 यह प्रजाति लुप्त होकर खत्म होने के कगार पर है। यदि समय रहते इस प्रजाति के संरक्षण के बारे में कोई कदम नहीं उठाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब हम गिद्दों को केवल किताबों के पन्नों पर ही देखेंगे। इस प्रजाति को नाहन क्षेत्र में केवल कुछ ही गिद्दों को देखा गया है। कुछ दिनों पहले 5-10 गिद्दों को आसमान में उडते हुए देखा गया था लेकिन अब इनका कोई पता नहीं है, जिससे पर्यावरण पर इसका विपरित असर पड रहा है। लोग अपने मवेषियों के मरने के बाद उन्हें जंगल में तो फेंक देते हैं लेकिन गिद्दों के न होने से वह वहीं पर गलते-सडते रहते है, जिससे वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है। जब इस बारे कुछ लोगों की राय ली तो उनका कहना है कि आजकल लोगों द्वारा गाय व भैसों को दूध के लिए गोली व इंजेक्शन लगाते हैं तथा इंजेक्षन पशुओं के मांस में होने से गिद्द मर जाते हैं, वहीं दूसरी ओर विभाग का कहना है कि लोगों के मवेषियों को जंगली बाघ मारते हैं तथा लोग मरे हुए पशुओं पर जहरीली दवाई बाघ को मारने हेतू लगाते है, जिससे बाग के साथ-साथ गिद्द भी इसे खाकर मरने लगे है।
इसके अलावा गिद्दों के मरने के अन्य ओर भी बहुत से कारण हो सकते है। लुप्त हो रहे गिद्दों के बारे जब प्रबुद्व लोगों से बात की गई तो उनका कहना था कि पहले लोगों द्वारा पशुओं के मरने के बाद पारंपरिक रूप से चमडा उतारा जाता था, जिससे यह गिद्द आराम से खा लिया करते थे लेकिन अब कोई भी यह कार्य नहीं करता जिससे इनके लिए फूड कम होना भी एक कारण है। उन्होंने कहा कि दूसरी बात है कि जनसंख्या वृद्वि से जंगलों का कटाव व लोगों की बढती रिहायषी से इनके लुप्त होने का मुख्य कारण है। प्रबुद्व लोगों ने बताया कि लगातार शहरों व मंदिरों में लाउड स्पीकरों के बजने तथा लोगों के आने से भी गिद्द यहां से अपना स्थान छोड चुके है। उन्होंने कहा कि लोगों को इस प्रजाति को बचाने के लिए जागरूक करना होगा।