ज्वालामुखी: हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस अब तक संगठन चुनावों का फैसला नहीं कर पाई है। कांग्रेस को ज्वालामुखी व इंदौरा ब्लाक कांग्रेस कमेटियों के विवाद का फैसला अभी करना है। समूचे विवाद की मूल वजह वीरभद्र बनाम स्टोक्स की गुटबाजी बताई जाती है। ज्वालामुखी में संजय रतन को वीरभद्र सिंह का करीबी माना जाता है तो नरदेव कंवर को स्टोक्स का करीबी माना जाता है। यही हाल इंदौरा का है। वहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मनमोहन कटोच की पसंद के पैनल को संगठन चुनावों में बाकायदा हरी झंडी मिली। व चुनाव प्रभारी सुनील शर्मा ने बाकायदा चुनाव तक करवा दिये। लेकिन यहां भी विावाद पैदा हो गया। चुनावों को कर्ण पठानिया ने चुनौती दे दी। पर्दे के पीछे का सारा खेल आरोप लगाया जा रहा है कि आशा कुमारी खेल रही हैं। माना जा रहा है कि ज्वालामुखी में आशा कुमारी संजय रतन को शह दे रही हैं। तो इंदौरा में उनकी पंसद कर्ण पठानिया हैं।
ज्वालामुखी में हालांकि संगठन चुनावों में नरदेव कंवर रूमा कौंडल व विजेन्दर धीमान न ही मेंबरसिप की। लेकिन संजय रतन की दावेदारी को किस तरह तव्वजेा दी जा सकती है। इसका फैसला पार्टी के चुनाव प्रभारी का ेही लेना है। चुनाव प्रभारी रजनि पाटिल की महाराष्टर में व्यस्तता की वजह से विवाद अभी तक नहीं सुलझ पाया है। बताया जा रहा है कि रजनी पाटील इन दिनों बीमार चल रही हैं। व अपनी व्यस्तता के चलते वह इस मामले पर कुछ नहीं कर पा रही हैं। ज्वालामुखी में कांग्रेस का विवाद संजय रतन की वजह से पैदा हुआ था। संजय रतन ने पिछला चुनाव कांग्रेस से बगावत कर लड़ा था। संजय ने दो बार कांग्रेस के खिलाफ बगावत की व चुनाव लड़ा व फिर कांग्रेस में वापिस आ गये। विधानसभा चुनावों में ज्वालामुखी में टिकट रूमा कौंडल को मिली तो संजय रतन ने बगावत कर आजाद चुनाव लड़ा । जिससे चुनावों में भाजपा प्रत्याशी रमेश धवाला जीत गये । यही नहीं चुनावों में उनके पिता सुशील रतन न ेप्रदेश स्वतंत्रता सेनानी कल्याण बोर्ड के उपाध्यक्ष पद पर रहते हुये चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ काम किया । जिससे पार्टी को नुक्सान हुआ । फायदा रमेश धवाला ले गये । पार्टी में भी एक खेमा उनकी वापिसी का डटकर विरोध कर रहा था। लेकिन संजय की वापिसी ने उनके विरोधियों को सकते में डाल दिया है। जिससे कांग्रेसी एकता का सपना तार तार हो रहा है। संगठन चुनावों में पार्टी की ओर से तैनात चुनाव पर्यवेक्षक संजीव कुठियाला की कार्यशैली के खिलाफ आलाकमान से शिकायत की थी। दरअसल संगठन चुनावों को लेकर पी सी सी डेलिगेट नरदेव कंवर ने आपत्ति जताई थी कि चुनाव नहीं कराये गये थे।हालांकि चुनाव प्रभारी ने राजेन्दर राणा को ब्लाक कमेटी व रत्नी देवी को पी सी सी डेलिगेट को विजयी घोषित किया था। लेकिन नरदेव के विरोध को जायज माना गया व शिमला में इसकी घोषणा पर रोक लगा दी गई। बाद में प्रदेश चुनाव प्रभारी रजनी पाटील ने मामला आस्कर फर्नाडीज के पास भेज दिया था।
लेकिन विडंबना है कि आज तक इस विवाद का कोई हल नहीं निकल पाया है। जिससे कांग्रेस में घोर निराशा है।इसी निराशा की वजह से इस बार पंचायत चुनावों में कांग्रेस का ज्वालामुखी में सूपडा ही साफ हो गया। हालांकि नगर पंचायत में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव कांग्रेस ने जीता भी। लेकिन जिला परिषद में कांग्रेस की जो दुर्गत हुई वह किसी से छिपी नही है। भाजपा को ज्वालामुखी क्षेत्र की पांच में से पाचं सीटों पर विजय हासिल हुई। यही नहीं देहरा ब्लाक समिती में कांग्रेस को 27 में से मात्र सात सीटें ही मिलीं। लेकिन जब चुनाव हुये तो कांग्रेस प्रत्याशी को केवल दो मत मिले।
कांग्रेस नेता नरदेव कंवर मानते हैं कि संगठन चुनावों का फैसला हो गया होता तो निशचय ही परिणाम कुछ ओर होते। डिलिमिटेशन के बाद ज्वालामुखी हल्के में 92 पोलिंग बूथ बने हैं , जो 46 पंचायतों में हैं । चंगर में 25 पंचायतें हैं तो बलिहार में 21 हैं । इलाके में करीब 75 हजार मतदाता हैं । जिनमें 28 हजार राजपूत , 14 हजार ओबीसी , 8 हजार ब्राहमण सहित दूसरे मतदाता हैं । लेकिन कांग्रेस भाजपा के वोट बैंक में सेध लगाने व वोट का जातिगत ध्रुवीकरण कराने में अब तक सफल नहीं हो पा रही है । इसकी मूल वजह कमजोर संगठन व गुटबाजी ।