सोलन: बाजार में बिक रहे मिलावटी शहद को लेकर देश के शीर्ष विशेषज्ञों ने गहरी चिंता जताई है। नौणी विश्वविद्यालय में आयोजित एक राज्य-स्तरीय संगोष्ठी में अधिकारियों ने साफ कहा कि शहद की हर बूंद का स्रोत पता होना (ट्रेसेबिलिटी) बेहद जरूरी है, ताकि ग्राहकों का विश्वास बना रहे और उन्हें शुद्ध उत्पाद मिल सके। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में प्रदेश भर से 250 से अधिक मधुमक्खी पालकों ने हिस्सा लिया।
यह संगोष्ठी डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग द्वारा राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के सहयोग से आयोजित की गई थी।

पोर्टल पर रजिस्टर करें, कीटनाशकों से बचें
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता, भारत सरकार के राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन के निदेशक डॉ. प्रभात कुमार ने कहा कि शहद की ट्रेसेबिलिटी सुनिश्चित करने के लिए सभी मधुमक्खी पालकों को ‘मधु क्रांति पोर्टल’ पर अपना पंजीकरण करवाना चाहिए। उन्होंने बताया कि भारत में शहद का उत्पादन दोगुना होकर 1.52 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है, लेकिन गुणवत्ता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने रासायनिक कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे मधुमक्खियों को भारी नुकसान हो रहा है।
सिरप मिले शहद पर कुलपति ने जताई चिंता
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने सिरप मिले शहद के बढ़ते चलन पर चिंता जताई और शहद की गुणवत्ता जांचने के लिए अच्छी प्रयोगशालाओं की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि बाजार में दामों के उतार-चढ़ाव से किसानों को बचाने के लिए नए तरीकों पर शोध करने की आवश्यकता है। उन्होंने किसानों को स्थानीय मधुमक्खी प्रजातियों को अपनाने और उनके संरक्षण की भी सलाह दी।
इस दो दिवसीय संगोष्ठी के दौरान, किसानों को गुणवत्तापूर्ण शहद उत्पादन, निर्यात के नियम और सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी गई। उन्हें विश्वविद्यालय की मधुमक्खी पालन इकाइयों, शहद प्रसंस्करण यूनिट और गुणवत्ता जांच प्रयोगशाला का भ्रमण भी करवाया गया।