नाहन : शिलाई महाविद्यालय में हिमजनमंच नाहन द्वारा भाषा एवं संस्कृति विभाग के सौजन्य से दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें सिरमौर के पारंपरिक लोक नृत्य—रासा, हारुल और मुजरा पर विशेष प्रशिक्षण दिया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य क्षेत्रीय सांस्कृतिक धरोहर को सहेजना और नई पीढ़ी को इसके प्रति जागरूक करना था। कार्यशाला में कुल 20 लोक कलाकारों ने भाग लिया, जिन्होंने इन प्राचीन नृत्य रूपों की बारीकियों को सीखा।
पहले दिन, प्रतिभागियों को सिरमौर के पारंपरिक लोक नृत्य “रासा” का पूर्वाभ्यास करवाया गया। रासा नृत्य एक प्राचीन और विशेष प्रकार का नृत्य है, जो सिरमौर की सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा है। इस नृत्य में विभिन्न रास-लीलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। अध्यक्ष केएस नेगी और सहयोगी मंगीराम ने कलाकारों का मार्गदर्शन किया और उन्हें नृत्य के हर पहलू को गहराई से समझाया।
दूसरे दिन, प्रतिभागियों को “मुजरा” और “हारुल” नृत्यों का अभ्यास कराया गया। हारुल सिरमौर का एक प्रमुख लोक नृत्य है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में प्रस्तुत किया जाता है। इस नृत्य के दौरान नोतीराम की हारुल और सुनाईक पंजाईक की हारुल का अभ्यास करवाया गया।
कार्यशाला के दौरान, विद्यालय के सहायक प्रवक्ता विद्या वर्मा ने सिरमौर के लोक गीतों और उनके महत्व पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने सिरमौर की सांस्कृतिक धरोहर और लोक संगीत की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला, जिससे कलाकारों और उपस्थित लोगों को इस विरासत के महत्व को समझने का अवसर मिला।
कार्यशाला के अंतिम दिन, कलाकारों ने सीखे हुए नृत्यों का प्रदर्शन करने की योजना बनाई। यह कार्यक्रम 10 अक्टूबर को 11 बजे आयोजित किया जाएगा, जहां सभी प्रतिभागी अपने-अपने नृत्य रूपों को प्रस्तुत करेंगे। इस आयोजन का उद्देश्य न केवल कलाकारों के कौशल को निखारना था, बल्कि सिरमौर की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखना भी है ।