शिवरात्रि पर शिवमयी बन जाती है बैजनाथ नगरी

कांगड़ा घाटी जहां पूरे विश्व में शक्तिपीठों के नाम से जानी जाती है। वहीं पर जिला में आशुतोष भगवान शिव के अनेक प्राचीन व ऐतिहासिक मन्दिर हैं। जिनमें शिवालिक पर्वतमालाओं की गोद में अवस्थित उत्तरी भारत का प्रसिद्घ व प्राचीन शिव धाम बैजनाथ एक है। जहां पर लंकाधिपति रावण ने तपस्या की थी , ऐसी मान्यता है । यूं तो इस मंदिर में वर्ष भर प्रदेश के अतिरिक्त देश विदेश से हजारों की तादाद में आने वाले पर्यटक इस प्राचीन मंदिर में विद्यमान प्राचीन शिवलिंग के दर्शन के साथ साथ इस क्षेत्र की प्राकृतिक नैसर्गिक छटा का भरपूर आनंद उठाते हैं परन्तु वर्ष में श्रावण मास एंव शिवरात्रि के अवसर पर मेलों का विशेष आयोजन किया जाता है ,जिसमें इस वर्ष शिवरात्रि मेला दो मार्च से 6 मार्च तक बैजनाथ में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है ।

यह ऐतिहासिक शिव मंदिर शिल्प एंव वास्तुकला का अनूठा बेजोड़ नमूना है जिसके भीतर भगवान शिव शिवलिंग अर्धनारीश्वर के रूप में विराजमान हैं तथा मंदिर के द्घार पर कलात्मक रूप से बनी नंदी बैल की मूर्ति आकर्षण का मुख्य केंद्र है । इस मंदिर के बारे में कई किवंतियां प्रचलित हैं, जिसमें एकजनश्रुति के अनुसार राम रावण के युद्घ के दौरान रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर घौर तपस्या की थी और भगवान शिव को लंका चलने का वर मांगा , ताकि युद्घ में विजय प्राप्त हो सके । भगवान शिव ने प्रसन्न होकर रावण के साथ लंका एक पिंडी के रूप में चलने का वचन दिया और साथ में यह शर्त रखी कि वह पिंडी को कहीं जमीन पर न रखे बल्कि सीधा इसे लंका पंहुचायें ।

जैसे रावण शिव की इस अलौकिक पिंडी को लेकर लंका की और रवाना हुआ तो उसे रास्ते में कोरग्राम बैजनाथ नामक स्थान पर में लघुशंका लगी और उन्होंने वहां खड़े एक व्यक्ति को थोडी देर के लिये पिंडी सौंप दी । लघुशंका से निवृत होकर रावण ने देखा कि जिस व्यक्ति के हाथ में पिंडी दी थी वह ओझल हो गये हैं और पिंडी जमीन में स्थापित हो चुकी थी । रावण ने स्थापित पिंडी को उठाने के काफी प्रयास किये परन्तु सफलता नहीं मिल पाई फिर उन्होंने इस स्थली पर घोर तपस्या की और अपने दस सिर की आहूतियां हवन कुंड में डालीं । तपस्या से पसन्न होकर रूद्र महादेव ने रावण के सभी सिर पुन: स्थापित कर दिये ।

एक दूसरी कथा के अनुसार द्घापर युग में पांडवों ने अज्ञात वास के दौरान इस मंदिर को बनवाया , लेकिन निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया, बताया जाता है कि बाद में दो व्यापारियों आवक एंव मनूक ने इसे पूरा करवाया था । तब से लेकर अब यह स्थली उत्तरी भारत में शिव धाम के नाम से जानी जाती है । श्रावण मास में इस मंदिर में एक महीने तक मेले का आयोजन किया जाता है । जहां पर श्रद्घालु भगवान शिव की पिंडी पर बिल पत्र, दूध फल , भांग धतूरा इत्यादि अर्पित कर अपने कष्ट निवारण के लिये अराधना करते हैं , जबकि शिवरात्रि के पावन मौके पर यह स्थली पांच दिनों तक शिवमयी हो जाती है ।

दो मार्च को शिवरात्रि मेले के पावन अवसर पर इस ऐतिहासिक मंदिर में पांरपरिक पूजा एंव हवन किया जायेगा । तथा शहर में भी शोभा यात्रा निकाली जायेगी ।इस अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल भी शिरकत करेंगे। समारोह पांच दिनों तक चलेगा। प्रदेश सरकार की ओर से इस मेले को राज्य स्तरीय मेला घोषित किया गया है । छह मार्च को इंदिरा गांधी स्टेडियम में समापन समारोह होगा।मेले को आर्कषक बनाने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम व दूसरी गतिविधियों को शामिल किया गया है , ताकि इस मौके पर आने वाले श्रद्घालु व पर्यटक मंदिर मे शिवलिंग के दर्शन के साथ साथ मेले में सांस्कूतिक कार्यक्रम का भरपूर आनन्द उठा सकें ।

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