बैजनाथ: शिव पुराण के अनुसार श्रावण मास में भगवान शिव की उपासना के लिये सबसे उपयुक्त समय माना जाता है तथा ऐसी मान्यता है कि श्रावण मास में की गई तपस्या से भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनवांछित फल प्रदान करते हैं।
कांगडा जनपद के बैजनाथ में स्थित प्राचीन शिव मंदिर उत्तरी भारत का एक महान माना जाता है। जहां वर्ष भर प्रदेश के अतिरिक्त देश-विदेश से भी लाखों की तादाद में आने वाले पर्यटक इस प्राचीन मंदिर में विद्यमान प्राचीन शिवलिंग के दर्शन के साथ-साथ इस क्षेत्र की प्राकृतिक नैसर्गिक छटा का भरपूर आनंद उठाते हैं, लेकिन श्रावण मास एंव शिवरात्री महोत्सव में यह नगरी बम-बम भोले के उद्घोश से शिवमयी बन जाती है। हर वर्ष इस मंदिर में श्रावण मास के दौरान पड़ने वाले सभी सोमवार को मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है तथा मन्दिर समिति द्वारा श्रावण मास के सभी सोमवार को मेले के रूप में मनाया जाता है।
मंदिर के साथ बहने वाली विनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में स्नान करने का विशेष महत्व है तथा मन्दिर न्यास द्वारा सात लाख रूपये की राशि व्ययकरके खीर गंगा घाट का सुधार करके श्रद्धालुओं के स्नान की बेतहर व्यवस्था की गई है तथा श्रद्धालु स्नान करने के उपरान्त शिव लिंग को पंचामृत से स्नान करवा कर उसपर विल्व पत्र, फूल, भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित कर भोले नाथ को प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुण्य कमाते हैं।
उल्लेखनीय है कि यह ऐतिहासिक शिव मंदिर प्राचीन शिल्प एवं वास्तुकला का अनूठा व बेजोड़ नमूना है, जिसके भीतर शिवलिंग अर्ध नारीश्वर के रूप में विद्यमान है तथा मंदिर के द्वार पर कलात्मक रूप से बनी नंदी बैल की मूर्ति शिल्प कला का एक अदभुत नमूना है।
एक जनश्रुति के अनुसार द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञात वास के दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था परन्तु कार्य पूर्ण नहीं हो पाया था। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य आहुक एंव मनूक नाम के दो व्यापारियों ने पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थल शिवधाम के नाम से उत्तरी भारत में विख्यात है।
इस मंदिर में शिव लिंग स्थापित होने बारे कई किवदंतियां प्रचलित हैं। जनश्रुति के अनुसार राम रावण युद्ध के दौरान रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिये कैलाश पर्वत पर घोर तपस्या की थी और भगवान शिव को लंका चलने का वर मांगा ताकि युद्ध में विजय प्राप्त की जा सके। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर रावण के साथ लंका एक पिंडी के रूप में चलने का वचन दिया और साथ में यह शर्त रखी कि वह इस पिंडी को कहीं जमीन पर रखकर सीधा इसे लंका पहुंचायें।
जैसे ही शिव की इस अलौकिक पिंडी को लेकर रावण लंका की ओर रवाना हुआ रास्ते में कोरग्राम (बैजनाथ) नामक स्थान पर रावण को लघुशंका महसूस हुई और उन्होंने वहां खड़े एक व्यक्ति को थोड़ी देर के लिये पिंडी सौंप दी। लघुशंका से निवृत होकर रावण ने देखा कि जिस व्यक्ति के हाथ मे वह पिंडी दी थी वह ओझल हो चुके हैं और पिंडी जमीन में स्थापित हो चुकी थी। रावण ने स्थापित पिंडी को उठाने के काफी प्रयास किये परन्तु सफलता नहीं मिल पाई फिर उन्होंने इस स्थली पर घोर तपस्या की और अपने दस सिर कि आहुतियां हवन कुंड में डालीं। तपस्या से प्रसन्न होकर रूद्र महादेव ने रावण के सभी सिर पुनः स्थापित कर दिये।
इस वर्ष श्रावण मास में पड़ने वाले सभी पांच सोमवार को इस शिवालय में मेले का आयोजन पारम्परिक एवं बड़े हर्षोल्लास के साथ किया जाएगा जिसके लिये प्रशासन एवं मन्दिर न्यास द्वारा श्रद्धालुओं की सुरक्षा एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने बारे व्यापक प्रबन्ध किये गये हैं ताकि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो। मन्दिर न्यास की ओर से श्रद्धालुओं के लिये लंगर की उचित व्यवस्था भी की गई है।