नाहन : अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेले के दौरान, आज एक बहुभाषी कवि सम्मेलन का शानदार आयोजन किया गया। इस साहित्यिक कार्यक्रम में जिला सिरमौर के लगभग तीन दर्जन कवियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और विभिन्न विषयों पर अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं। कवि सम्मेलन का उद्घाटन जिला भाषा अधिकारी कांता नेगी ने किया, जबकि वरिष्ठ कवि दीपचंद कौशल जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। मंच संचालन का दायित्व वरिष्ठ कवि डॉ. ईश्वर दास राही ने कुशलतापूर्वक संभाला। कार्यक्रम की शुरुआत रविता ने अपनी गुरु वंदना से की, जिसने पूरे माहौल को भक्तिमय बना दिया।
कवि सम्मेलन में विविध रचनाओं की प्रस्तुति ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कवियों ने सामाजिक, राजनीतिक, प्रेम और भक्ति से जुड़े विषयों को अपनी कविताओं में पिरोया। शबनम शर्मा ने ‘शब्दों की चोट मन का खोट’ और विनोद कुमार सैनी ने ‘तुम खुश होते’ जैसी भावनात्मक रचनाएँ पढ़ीं। गोविंद गौरव की ‘बीहड़ में कभी खुद को छोड़ना पड़ता है’ और अर्चना शर्मा की ‘अश्कों के बोझ की ये कहानी हुई, जिंदगी हर घड़ी पानी पानी हुई’ को काफी सराहना मिली। वहीं, दीपराज विश्वास ने अपनी रचना ‘इश्क है सबसे बड़ा मजहब समझता हुं मैं’ से प्रेम की सार्वभौमिकता का संदेश दिया। स्थानीय मुद्दों और व्यंग्य को प्रताप पराशर ने ‘प्रधानी को आएगो खेल, मुफ्त देएंदी आटो तेल’ और लायक राम भारद्वाज ने ‘आधुनिक व्यंग्य’ के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया।

कई कवियों ने अपनी रचनाओं में स्थानीय संस्कृति और सामाजिक जागरूकता पर जोर दिया। सुरेंद्र कुमार सूर्य ने ‘नशा कोरी कोरी गंवाई लोई जान’ के माध्यम से युवाओं में नशे की समस्या को उजागर किया, जबकि मीनाक्षी वर्मा ने ‘नदी ओर नारी’ के तुलनात्मक महत्व को दर्शाया। दीपचंद कौशल ने अपनी अध्यक्षीय कविता ‘है रेणुका धरती तुझे शत शत प्रणाम’ से रेणुका माता को नमन किया। इसके अलावा, डॉ. शबाना सैय्यद, सरला गौतम, नरेंद्र छींटा, योगेंद्र अग्रवाल, साधना शर्मा, दीपक जोशी, जावेद उल्फत, नासिर यूसुफजई, प्रेमपाल आर्य, जितेंद्र ठाकुर, अनुज कुमार और अन्य कवियों ने भी अपनी उत्कृष्ट रचनाएं प्रस्तुत कीं।
कार्यक्रम का समापन डॉ. ईश्वर दास राही की भावुक कविता ‘आई चेहि मेले के तू मेरी बाठणे’ और उनके धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने जिला भाषा विभाग की ओर से सभी साहित्यकारों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। यह सफल आयोजन रेणुका जी मेले के दौरान साहित्य और संस्कृति के संगम का एक अविस्मरणीय उदाहरण बन गया।