सोलन: बघल्याणी बोली में कविता के प्रखर कवि, व्यंग्यकार, लघु कथाकार सतपाल के आकस्मिक निधन की खबर सुन प्रदेश की पहाड़ी भाषा के साहित्य संसार में सन्नाटा फैल गया है। बाघली बोली के चर्चित कवि सतपाल मूलतः अर्की तहसील के डुमैहर गांव के रहने वाले थे। अठसठ वर्ष के सतपाल का अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया, कुछ समय से वह अस्वस्थ चल रहे थे। उनकी आकस्मिक मृत्यु पर साहित्य संगम सोलन और बाघली साहित्य संस्थान ने गहरा दुःख प्रकट किया है।
सतपाल लंबे अरसे से बाघली बोली में व्यंग्य और कविताएं लिखते रहे थे। उनकी कविताएं दैनिक जागरण, दिव्य हिमाचल में, गिरिराज, हिमभारती में निरंतर प्रकाशित होती रही थीं। उनकी कविताओं और व्यंग्यों में अपनी बोली के प्रति उकना प्रेम सहज देखा जा सकता था। जब वे मंचों से अपनी बघल्याणी बोली की कविताएं प्रस्तुत करते थे, तो श्रोता भावविभोर हो उठते थे। प्रदेश ही नहीं, अपितु अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक मंचों पर भी वे लोकभाषा में रचित कविताओं के माध्यम से अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करवाते रहे थे।

डॉ. हेमराज कौशिक का कहना है कि उनकी आकस्मिक मृत्यु ने बाघली बोली के साहित्य में एक ऐसी शून्यता ला दी है, जिसकी निकट भविष्य में भरपाई होना कठिन ही नहीं, ना मुमकिन है। उनके आकस्मिक अवसान पर बाघली साहित्य के प्रमुख साहित्यकार डॉ. प्रेमलाल गौतम, डॉ. शंकर लाल वाशिष्ठ, यादव किशोर गौतम, बृज लाल शर्मा, डॉ. हेमराज कौशिक, प्रेम रघुवंशी, डॉ. अशोक गौतम, नेमचंद ठाकुर ने गहरा दुख व्यक्त किया है। सतपाल के आकस्मिक निधन को डॉ. अशोक गौतम ने बाघली साहित्य को अपूर्णीय क्षति बताया है।