सोलन में जगाई गई जागरूकता की अलख, एक पहल रोशन कर सकती है चार जिंदगियां

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By Hills Post

सोलन: मृत्यु के बाद भी आपकी आंखें इस खूबसूरत दुनिया को देख सकती हैं। इसी महान उद्देश्य के साथ, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग सोलन ने बुधवार को 40वें राष्ट्रीय नेत्रदान जागरूकता पखवाड़े के अवसर पर एक प्रेरणादायक कार्यक्रम का आयोजन किया। साई संजीवनी नर्सिंग कॉलेज के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में स्वास्थ्य विशेषज्ञों, समाजसेवी संस्थाओं और नर्सिंग छात्राओं ने नेत्रदान को एक जनांदोलन बनाने का संकल्प लिया।

कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने नेत्रदान से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करते हुए महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। मुख्य अतिथि, सीएमओ सोलन डॉ. अजय पाठक ने अपने संबोधन में कहा, “एक व्यक्ति का नेत्रदान चार नेत्रहीन लोगों के जीवन में उजाला ला सकता है। समाज में जागरूकता की कमी को दूर करने के लिए ऐसे कार्यक्रम अत्यंत आवश्यक हैं।”

एमएमयू मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ डॉ. आरके गुप्ता ने चिंताजनक आंकड़े प्रस्तुत करते हुए बताया कि भारत में सालाना लगभग 2 लाख नेत्रों की आवश्यकता है, जबकि केवल 20 हजार लोग ही नेत्रदान के लिए आगे आते हैं। उन्होंने श्रीलंका का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां की 80% बौद्ध आबादी नेत्रदान को महादान मानती है, जिससे वह इस क्षेत्र में विश्व में अग्रणी है।

विशेषज्ञों ने यह भी स्पष्ट किया कि नेत्रदान एक सरल प्रक्रिया है, जिसे मृत्यु के 4 से 6 घंटे के भीतर किया जा सकता है। इस अवसर पर नेत्रदान का संकल्प लेने वाले नागरिकों को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित भी किया गया।

कविताओं से दिया संदेश, प्रकृति के दर्द पर भी छलका कवियों का दर्द

इस मौके पर आयोजित कवि सम्मेलन में कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से नेत्रदान के महत्व पर प्रकाश डाला और प्राकृतिक आपदा पर तीखे तंज किए। पूजा जायसवाल ने कहा कि नेत्रदान आखिरी प्रेम है। उन्होंने शुक्रिया मां कविता के माध्यम से मां की महिमा बताई।

पहाड़ों की वेदना को इंगित करती संजीव अरोड़ा की कविता के बोल कुछ इस तरह थे… सुना है चांद पर बस्ती बसाएंगे। मंजूला ठाकुर ने मेरा चश्मा शीर्षक से कविता पढ़ी। कविता की बानगी देखिए… मेरा चश्मा न जाने व बूढ़ा व लंगड़ा हो गया। हेमंत अत्रि ने प्रकृति से छेड़छाड़ पर दहाड़ शीर्षक से कविता पढ़ी… प्रकृति रही है दहाड़,फिर दरक रहे हैं पहाड़।

यशपाल कपूर ने फरमाया, एक जोड़ी आखें दे जाओ, किसी की दुनिया को रोशन बनाओ। डॉ.कमल अटवाल ने कहा कि नेत्रदान की महिमा बतलाता हूं, नेत्रदान की अलख जगाता हूं। सत्येन ने कहा कि कौन कहता है देवभूमि धंसने लगी है, अरे नादान, ये तो तेरी नादानी पर हंसने लगी है। डॉ. कुलराजीव पंत ने पहाड़ सोचता है शीर्षण से कविता पढ़ी।

डॉ. नरेंद्र शर्मा ने विश्व में चल रहे माहौल पर युद्ध कविता पढ़ी। राधा चौहान ने कहा कि… किसी का जीवन आबाद करके जाएंगे, अपनी आंखों को दान करके जाएंगे। डॉ. अर्चना पंत ने कहा कि प्रकृति की महानता का वर्णन कुछ यूं किया.. प्रकृति तुम कितनी महान हो, कभी सूखा तो कभी बहार हो। सीएमओ सोलन डॉ.अजय पाठक ने अबला नहीं वीरांगना कविता के माध्यम से नारी सशक्तिकरण का उल्लेख किया।

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