शिमला: हिमाचल प्रदेश में सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के प्रयास अब परिणाम दे रहे हैं। प्रदेश के 2.22 लाख से अधिक किसान अब रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक पद्धति से खेती कर रहे हैं। इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि हुई है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो रही है। यह मॉडल अब देश भर के लिए एक मिसाल बन रहा है।
सबसे ज्यादा MSP और ट्रेनिंग से मिला बल
इस सफलता के पीछे सरकार की प्राकृतिक उत्पादों के लिए देश में सबसे अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देना और किसानों को बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण देना है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व में हिमाचल सरकार ने अब तक 3.06 लाख किसानों और बागवानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दिया है और एक लाख नए किसानों को जोड़ने का लक्ष्य रखा है।

सरकार प्राकृतिक रूप से उगाई गई मक्की के लिए 40 रुपये, गेहूं के लिए 60 रुपये और कच्ची हल्दी के लिए 90 रुपये प्रति किलोग्राम का MSP दे रही है, जो किसानों के लिए एक बड़ा आर्थिक प्रोत्साहन है।
बाजार तक पहुंच और ब्रांडिंग पर जोर
किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य दिलाने के लिए सरकार ने एक मजबूत व्यवस्था भी तैयार की है। नाबार्ड के सहयोग से अब तक सात किसान उत्पादक कंपनियां स्थापित की जा चुकी हैं। प्राकृतिक उत्पादों को ‘हिम-भोग’ ब्रांड के तहत बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि उपभोक्ताओं को रसायन-मुक्त उत्पाद मिल सकें।
उत्पादों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए ‘सेटारा-एनएफ’ नामक एक स्व-प्रमाणन प्रणाली शुरू की गई है, जिसके तहत लगभग 1.97 लाख किसानों को प्रमाणित किया जा चुका है।
इन प्रयासों का असर जमीन पर भी दिख रहा है। सरकार ने पिछले सीजन में 1500 से अधिक किसानों से 399 मीट्रिक टन मक्की खरीदकर उन्हें 1.40 करोड़ रुपये का भुगतान किया। इसी तरह, इस वर्ष गेहूं और हल्दी की खरीद कर करोड़ों रुपये सीधे किसानों के खातों में हस्तांतरित किए गए हैं।
हिमाचल का यह सफल मॉडल अब कृषि वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और अन्य राज्यों के अधिकारियों को भी आकर्षित कर रहा है, जो इसके बारे में जानने के लिए प्रदेश का दौरा कर रहे हैं।