ज्वालामुखी: सरकारी उदासीनता व जनता के रवैये के चलते हिमाचल के जंगल तबाही के कगार पर हैं। लेकिन सरकारी तंत्र अभी तक कारगर व ठोस नीति इन्हें बचाने के लिये नहीं बना पाया है। सबसे अधिक खतरनाक हालात कांगड़ा जिला के जंगलों के हैं। जहां कभी घने जंगल होते थे वहां आज बंजर जमीनें हैं। हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में कुकिंग गैस की किल्लत आम बात है। गैस का इस्तेमाल अब वाहनों में हो रहा है। जिससे आम लोगों को गैस नहीं मिल पाती। जिससे लोग घरों में आग जलाने के लिये लकडिय़ों का इस्तेमाल करते हैं। जिससे जंगलों पर दवाब बन रहा है। सरकार की वनों को दोबारा लगाने की योजनायें भी चलती रहीं लेकिन लोग हैं कि वनों को खत्म करने पर तुले हैं। जंगलात महकमें के पास भी न तो कारगर तंत्र है। न ही मजबूत कठोर क ठोर कानून जिसके सहारे जंगलों को बचाया जा सके। अब तो जब से कटान पर रोक लगी है तब से तो हालात ओर भी पेचीदा हो रहे हैं। रोक केवल कागजों में ही है। जंगल निर्बाध रूप से कट रहे हैं।
कटान पर रोक से पहले थोड़ी बÞत लकड़ी लोग कीमत देकर बाजार से ले लेते थे । लेकिन अब तो वह भी जंगलों पर ही निर्भर हैं। इससे अधिक कुकिंग गैस की किल्लत पर वक्त पर सप्लाई का न होना। हालात बिगाड़ रहा है। जंगलात महकमें के लोंग भी मानते हैं। कि समय रहते कुकिंग गैस की किल्लत पर ध्यान न दिया गया तो हालात ओर भी खतरनाक हो जायेंगे। हालांकि हिमाचल प्रदेश के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रमेश ध्वाला ने कहा कि सरकार ग्रामीण इलाकों में कुकिंग गैस की सप्लाई बेहतर करने के लिये प्रयास कर रही है। उन्हांने बताया कि गैस का इस्तेमाल होटलों कारों में भी हो रहा है। जिससे गा्रमीण एल पी जी कि किल्लत महसूस कर रहे हैं। लेकिन सरकार तमाम प्रयास कर रही है। ताकि इसका दुरूपयोग रोका जा सके । कुछ उड़दस्ते बनाये गये हैं। जो हर जिला के होटलों में गैस के दुरूपयोग की जांच करते हैं । ज्वालामुखी में भी किसी जमाने में घने जंगल होते थे। लेकिन आज सैंकड़ों की तादाद में लोग जंगलों से लकड़ी काट कर लाते हैं। लेकिन उन पर रोक होने के बावजूद उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। चूंकि कानून कमजोर है।