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हिमाचल के जिला सिरमौर में बूढी दिवाली का पर्व शुरू

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नाहन: देश व प्रदेश के लोगों के लिए बेशक एक माह पहले दिवाली का पर्व संपन्न हो गया हो, मगर सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र में रह रहे कुछ लोगों के लिए खुशी का यह पल उस समय आया जब रविवार रात को बूढी दिवाली का पर्व शुरू हो गया। रविवार रात से शुरू हुआ बूढी दिवाली का यह जश्न आगामी 3-4 दिनों तक चलेगा, जिसमें लोगों रासे व नाटियां डालकर जश्न मनाएंगे। यहां के लोग बूढी दिवाली पर्व की शुरूआत रात को मशाले जलाकर करते है। लोग इन मशालों को लेकर गांव की परिक्रमा करते हैं और परिक्रमा के बाद गांव के मंदिर परिसर में एकत्रित होते हैं। लोगों का मानना है कि इन मशालों को जलाने से भूत-प्रेत कभी गांव में प्रवेश नहीं कर पाते और हमेशा शांति का माहौल बना रहता है।

क्षेत्र के लोग इस पर्व के दौरान तेलपक्की, शाकली और मुडा जैसे कई पहाडी व्यंजन बनाते हैं जिसके खाने का लुत्फ लोग अपने रिश्तेदारों के साथ उठाते हैं। इस पर्व में लोग जश्नस्वरूप मेहमानों के साथ मिलकर नाटियां व रासे डालते हैं और इस पर्व में जो गीत गाए जाते हैं वो पौराणिक होते हैं और हर गाने के पीछे कुछ न कुछ इतिहास छुपा होता है। बूढी दीवाली पर्व को दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाने के पीछे लोगों की अलग-अलग धारणाएं है। इस बारे पंजोडा निवासी बारू राम शर्मा ने बताया कि पहाडी क्षेत्र होने के कारण यहां के लोग अधिकतर कृषि पर आधारित हैं और जिस समय पूरे देश में दिवाली का पर्व होता है उस समय किसानों को खेतों में काफी काम करना पडता है इसलिए पूर्वजों ने एक माह बाद दिवाली मनाने का फैसला लिया जो सदियों से चला आ रहा है।

उन्होंने कहा कि आसपास के कई क्षेत्रों में दिवाली एक माह पूर्व मनाई जाती है। अब वहां के लोग भी यहां पर मेहमानवाजी करने पहंुचते हैं और नाच-गाकर दिवाली का जश्न मनाते है। शर्मा ने बताया कि दिवाली में गाए जाने वाले गानों में राजा-महाराजाओं की महानताओं और क्रूरताओं का व्याख्यान किया जाता है। उन्होंेने कहा कि इन पौराणिक गानों से जहां लोगों का मनोरंजन होता है, वहीं युवा वर्ग अपनी संस्कृति से भी परिचित रहता है। यह दिवाली का पर्व पंजोड, नाया, हलांह, पनोग, शिलाई, कंडीयारी के अलावा शिमला जिला के कई दूर-दराज गांवों में भी बूढी दिवाली मनाई जाती है।