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हिमाचल के राजगढ में आडू पर टफरीना जैसे घातक रोग के हमले की आशंका

नाहन: हिमाचल प्रदेश में जारी ठंडे मौसम की वजह से जहां सेब उत्पादकों के चेहरों पर खुशी झलक रही है वहीं एशिया की सबसे बेहतरीन माने जाने वाली पिच वैली राजगढ में आडू उत्पादक टफरीना जैसे घातक रोग के हमले से आशंकित है। ठंडक की वजह से इस बार आडू की फसल को बाजार तक पहंुचने तक 15-30 दिन तक की देरी भी हो सकती है। विशेषज्ञोें के मुताबिक यह वक्त आडू में बड स्प्राउट का वक्त होता है जिस दौरान आडू के पौधों में पते व फूल एक साथ निकलते है। लिहाजा मौसम के तापमान में वृद्वि की आवश्यकता पौधे में रहती है तापमान में वृद्वि के साथ ही पौधे की बड खुलनी शुरू हो जाती है। फूल स्वाभाविक रूप से खिल जाते हैं परंतु पतियों को सूर्य की रोशनी से क्लोरोफिल की आवश्यकता रहती है।

विशेषज्ञों के मुताबिक मार्च के पहले सप्ताह तक बर्फबारी व ठंडे मौसम में टफरीना रोग के लिए वातावरण तैयार कर दिया है यही कारण है कि राजगढ के आडू उत्पादक टफरीना रोग से सहमे हुए है। 70 के दशक में राजगढ क्षेत्र में आडू का उत्पादक छोटे स्तर से शुरू हुआ था जो क्षेत्र आज पिच बाउल आफ एशिया का दर्जा हासिल कर चुका है। मौजूदा में पिच वैली में वागबान 7500 हैक्टेयर में आडू का उत्पादक कर रहे हैं जिसमें 22 हजार मिट्रिक टन का उत्पादन हर साल होता है। मौसम की बेरूखी व सरकार की अनदेखी के चलते आडू उत्पादक अब ग्रिन हाउस में बेमौसमी सब्जियों के उत्पादक का विकल्प भी तलाश कर रहे हैं यहां तक कुछ आडू उत्पादकों ने आडू के बगीचे काट कर ग्रिन हाउस भी लगाने शुरू कर दिए है।

बागवानों का कहना है कि यातायात की सुविधा न होने के कारण मंडियों में पहंुचने से पहले आडू सड जाते है। बागवानों की एक अरसे से वातानुकूलित वाहनोंे की उपब्धता की मांग रही है साथ ही विपगण की सुविधा की मांग भी होती रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक सेब उत्पादकों को 1200 चिलिंग हवर्स की आवश्कता रहती है जबकि आडू उत्पदाकों को 800 से कम चिलिंग हवर्स की आवश्यकता होती है। इस बार लंबे समय के बाद भारी बर्फबारी के कारण न्यूनतम चिलिंग हवर्स का आंकडा 1200 पार कर चुका है। उद्यान विभाग उपनिदेशक एसके कटोच ने कहा कि टफरीना के रोग से उत्पादन में कमी आ सकती हैं। बागबानों को सलाह दी गई है कि समय रहते किट नाशक दवाइयों का प्रयोग करें।

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