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हिमाचल प्रदेश की सबसे बडी प्राकृतिक झील श्री रेणुका जी के वातावरण में बदलाव को लेकर शोध शुरू

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नाहन: हिमाचल प्रदेश की सबसे बडी प्राकृतिक झील श्री रेणुका जी के साथ-साथ इस क्षेत्र के वातावरण में बदलाव को लेकर शोध शुरू हुआ है। 6 से 18 माह के बीच देहरादून का वाडिया इंस्टीच्यूट आफ हिमालय इस शोध के आधार पर इस झील की उम्र बताने की स्थिति में होगा। फिलहाल झील की सतह से हजारों साल पुराने नमूने ढूंढे जा रहे है, जिसके आधार पर शोध को अंतिम नतीजे तक पहुंचाया जा सकेगा। फिलहाल इस संस्थान की टीम को अब तक एक नमूना मिला है। जानकारी के अनुसार आधुनिक तकनीक से इस नमूने को झील में आठ मीटर की गहराई से निकाला गया हैं जबकि इसका नमूना 12.5 मीटर से निकालने का प्रयास हो रहा है। इस दल की अगुवाई वेज्ञानिक डा. नरेंद्र मीना कर रहे हैं झील से नमूना निकालना बेहद टेढी खीर है, इसके लिए बकायदा टीम ने झील के बीच में प्लेट फार्म बना रखा है जिस पर टीम के सदस्य आधुनिक उपक्रमों से झील से सेडीमेंट के नमूने निकाल रहे है।

टीम के सदस्यों को दूसरा नमूना मिलने की उम्मीद हैं पता चला है कि संस्थान झील से मिले नमूनों की गहनता से वैज्ञानिक पडताल करेगा जिसके बाद इन नमूनों को माइनस 20 डिग्री के तापमान पर संरक्षित कर दिया जाएगा ताकि भविष्य में भी जरूरत पडने पर इन नमूनों से शोध किया जा सके। गौरतलब है कि झील में कोर सेमलिंग का कार्य पहली मर्तबा अमल में लाया जा रहा है। इसके शोध के नमीजों के माध्यम से झील की उम्र के अलावा भूतकाल में क्षेत्र में हुई बारिश व मौसम में बदलाव के आंकडे भी जुटाए जा सकेंगे। ऐसा भी पता चला हे कि कई झीलों का आंकलन करने के बाद वाडिया संस्थान देहरादून ने कुछ खास कारणों को लेकर इस झील से कोर सेंमलिंग का फैसला किया है। इस कार्य का जायजा संस्थान के निदेषक एके दुबे भी ले चुके है।

हालांकि स्पष्ट नहीं है लेकिन इस बात का खुलासा हुआ है कि झील की उम्र के नतीजे जल्द ही सामने आ सकते है। फिलहान झील की उम्र को लेकर चलने वाली धारणाओं के अनुसार यह झील 15 हजार साल पुरानी हो सकती है। शोध से इस बात का भी पता चल सकेगा कि क्षेत्र के वातावरण में किस तरह के बदलाव आते रहे है। कुल मिलाकर संस्थान का यह प्रयास झील के इतिहास के रहस्यों पर से पर्दा उठा सकता है। वैज्ञानिकों की राय के अनुसार झील की उम्र का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग की तकनीक का सहारा लिया जाएगा। शोध के नमीजों को राष्ट्रीय स्तर पर जनता में प्रकाशित किया जाएगा ताकि इस क्षेत्र में कार्य कर रहे वैज्ञानिकों को भी जानकारियां मिल सके।