संवाददाता

हिमाचल में अन्तर्राष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि मेला 13 फरवरी से

मंडी: अन्तर्राष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि मेला, हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाले मेलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ब्यास नदी के तट पर स्थित और रियासती राज्य की राजधानी रहा, मण्डी शहर देश की ‘छोटी काशी’ के रूप में जाना जाता है। मण्डी में स्थित मंदिरों को देखते हुए मण्डी का यह उपनाम बिल्कुल ठीक है। मण्डी में देवी-देवताओं को समर्पित कई मंदिर हैं, जिनमें लोगों की अथाह आस्था है।

हर वर्ष की भांति इस बार भी मण्डी में महाशिवरात्रि का पर्व 13 फरवरी से धूमधाम से मनाया जाएगा। यह त्योहार मण्डी के प्रसिद्ध भूतनाथ मंदिर में भगवान शिव और पार्वती विवाह का द्योतक भी है।

मण्डी में शविरात्रि मेले की शुरूआत राजा अजबर सेन के शासनकाल के दौरान सन् 1526 में मण्डी शहर की स्थापना के साथ हुई। अन्य त्योहारों की भांति मण्डी शिवरात्रि के बारे में की कई किंदवंतियां है। एक किंदवंतीं के अनुसार बहुत समय पहले यहां पर वन हुआ करता था, जहां आस-पास के गांवों की गाएं अक्सर घास चरती थी। उनमें से एक गाय शिवलिंग पर अपना दूध उड़ेल दिया करती थी। इस घटना की जानकारी मिलते ही राजा अजबर सेन स्वयं इस स्थान पहुंचे। एक रात स्वप्न में राजा अजबर सेन को भगवान शिव ने दर्शन देते हुए कहा कि वे उक्त स्थान पर शिवलिंग रूप में वास करते हैं। अगले दिन वहां खुदाई करने पर शिवलिंग प्राप्त हुआ। कुछ समय पश्चात् इसी शिवलिंग के आस-पास मंदिर का निर्माण किया गया, जो ‘भूतनाथ मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तभी से मण्डी में शिवरात्रि का पर्व मनाने की प्रथा चली आ रही है।

शिवरात्रि मेले के दौरान घाटी से अनेक श्रद्धालु देवी-देवताओं की पालकियां उठाकर मण्डी पहुंचते हैं व बच्चे-बूढ़े सब उत्साहित होकर इस पर्व में भाग लेते हैं।

मेले की शुरूआत भव्य शोभायात्रा जिसे स्थानीय भाषा में ‘जलेब’ कहा जाता है, से होती है। मेले में भाग लेने आए देवी-देवता सबसे पहले माधोराव मंदिर में उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। अगला पड़ाव भूतनाथ मंदिर में करते हुए वे ऐतिहासिक पड्डल मैदान पहुंचते हैं।

माधोराव के दरबार में नतमस्तक होने के पश्चात् ऋषि कमरुनाग (वर्षा के देवता), एक चोटी पर स्थित टारना मां के मंदिर में अगले सात दिन के लिए वास करते हैं।

इस मेले के दौरान पूरा मण्डी शहर उत्सव व भक्ति के रंग में सराबोर हो जाता है। पारम्परिक वाद्य यंत्रों से पूरा शहर गुंजयमान हो उठता है। हर ओर लाल ओर संतरी रंग की सुसज्जित पालकियां दिखाई पड़ती हैं। माधोराव एवं भगवान शिव के दरबार में उपस्थित होने पर देवी-देवता अपनी खुशी ज़ाहिर करते हैं।

पड्डल मैदान में लगाई गई प्रदर्शनी लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहती हैं। मेले में विभिन्न सरकारी व निजी संस्थानों द्वारा अपने उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई जाती है। इस दौरान खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें भारी भीड़ जुटती है। मेले में लोगों का मनोरंजन करने के लिए राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार द्वारा प्रस्तुतियां दी जाती हैं। यह स्थानीय कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का भी उपयुक्त मंच है। इस वर्ष बॉलीवुड व पंजाबी गायकों के साथ-साथ हास्य कलाकार भगवन्त मान और चाचा रौनकी राम भी लोगों का मनोरंजन करेंगे।

मेले की समाप्ति से एक दिन पहले जागरण का आयोजन किया जाता है, जिसमें भक्तजन रात भर भजन कीर्तन करते हैं। इस दौरान देवी-देवताओं के गूर आगामी वर्ष की भविष्यवाणी भी करते हैं। मेले के अंतिम दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना कर सब देवी-देवता अपने-अपने निवास स्थान को पधारते हैं व भक्तों द्वारा चादरें चढ़ाई जाती हैं।

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