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हिमाचल में प्राकृतिक खेती से जुड़े हैं 1.71 लाख से ज्यादा किसान

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मंडी: जय राम सरकार सरकार की प्राकृतिक खेती-खुशहाल किसान योजना प्रदेश के किसानों को खूब भा रही है। प्रकृति और किसान दोनों के लिए मुफीद यह खेती जहर मुक्त खेती व सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के तौर पर भी जानी जाती है। राज्य सरकार के प्रयासों से हिमाचल में 1 लाख 71 हजार से ज्यादा किसान प्राकृतिक खेती से जुड़ चुके हैं। सरकार से उन्हें अब तक 58 करोड़ रुपये से ज्यादा के लाभ प्राप्त हुए हैं। अभी प्रदेश में 9200 हैक्टेयर भूमि से अधिक पर प्राकृतिक खेती की जा रही है ।

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कृषि विभाग मंडी के आतमा परियोजना निदेशक तारा चंद शर्मा बताते हैं कि जिले मंडी में भी बड़ी संख्या में किसान प्राकृतिक खेती से जुड़े हैं। लोगों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने के लिए विभाग ने वर्ष 2018 से अगस्त 2022 तक जिले में 2296 प्रदर्शन प्लॉट किसानों के खेतों में लगाए हैं, जिससे 6894 किसान लाभान्वित हुए हैं । समय-समय पर अंतरराज्यीय, राज्य व जिला स्तर पर भ्रमण कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है । किसानों को जागरूक करने के उद्देश्य से पंचायत स्तर पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों से 46285 किसानों को लाभ हुआ है।

आतमा परियोजना के अंतर्गत किसानों को व्यक्तिगत तौर पर भी लाभान्वित किया जा रहा है । परियोजना के तहत देसी गाय खरीदने के लिए 50 प्रतिशत या अधिकतम 25 हजार रुपये का अनुदान दिया जा रहा है। इसके तहत 196 किसानों को 48 लाख 25 हजार रुपये का अनुदान दिया गया है । इसके अतिरिक्त पशुशाला को पक्का करने के लिए 8 हजार रुपये का अनुदान प्रति परिवार दिया जा रहा है जिससे 720 किसान परिवार लाभान्वित हुए हैं ।

कृषि विभाग के विषय वाद विशेषज्ञ जगदीश कुमार बताते हैं कि प्राकृतिक खेती किसानों की आय दोगुनी करने में बड़ी सहायक है। इसमें एक तो लागत लगभग शून्य के बराबर है, वहीं खाद, केमिकल स्प्रे व दवाईयां खरीदने के भी पैसे बचते हैं। केवल किसान के पास देसी नस्ल की गाय होनी चाहिए, जिससे वे खाद व देसी कीट नाशक बना सकता है। इनके इस्तेमाल से प्रकृति भी स्वच्छ रहती है। दूसरा इस पद्धति में क्यारियां, मेढ़ें बनाकर मिश्रित खेती की जाती है, जिससे किसानों की आय दोगुनी करने में भी यह बहुत कारगर है। प्राकृतिक खेती के तहत खेतों में मुख्य फसल के साथ मूंगफली, लहसुन, मिर्च, दालें, बीन्स, टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, अलसी, धनिया की खेती की जा रही है, जिससे किसानों को लाभ हो रहा है। इस खेती में बीज कम लगता है, उत्पादकता ज्यादा है।

घर पर देसी गाय के गूंत्र और गोबर तथा घर पर ही आसानी से उपलब्ध सामान जैसे खट्टी लस्सी, गुड़, खेतों में मिलने वाली वे जड़ी-बूडियां जिन्हें गाय नहीं खाती, उनकी पत्तियों को इस्तेमाल कर खुद जीवामृत, घनजीवामृत व अग्निअस्त्र आदि देसी कीट नाशक दवाईयां बनाई जाती हैं।। खेतों में उनका इस्तेमाल कर फसल की कीटों से सुरक्षा की जाती है।
जिलाधीश अरिंदम चौधरी का कहना है कि मंडी जिले में प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है। जहर मुक्त खेती से भंयकर बीमारियों से बचा जा सकता है साथ ही लागत शून्य होने के चलते किसानों के खर्चों की बचत व मिश्रित खेती तथा अच्छी पैदावार से उनकी आमदनी दोगुनी करने में भी यह सहायक है।