सोलन: भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI), सोलन और डॉ. वाईएस परमार विश्वविद्यालय, नौणी के पर्यावरण विभाग ने मंगलवार को संयुक्त रूप से हिमालय दिवस मनाया। इस अवसर पर विशेषज्ञों ने हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों पर गहरी चिंता व्यक्त की और इसके संरक्षण के लिए युवाओं से आगे आने का आह्वान किया।

BSI के सोलन स्थित केंद्र में आयोजित इस कार्यक्रम में वैज्ञानिकों, कर्मचारियों और छात्रों ने भाग लिया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य हिमालय क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी और इसके संरक्षण के लिए पर्यावरण-संवेदनशील योजना को बढ़ावा देना था।
2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद हुई थी शुरुआत
कार्यक्रम में BSI के वैज्ञानिक-एफ, डॉ. कुमार अम्बरीश ने ‘हिमालय दिवस’ के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इसकी शुरुआत 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद हुई थी, जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी। इस त्रासदी से व्यथित होकर प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और पद्मविभूषण पुरस्कार विजेता डॉ. अनिल पी. जोशी ने हिमालय को बचाने के लिए यह पहल शुरू की थी। उत्तराखंड सरकार द्वारा पहला हिमालय दिवस आधिकारिक तौर पर 2015 में मनाया गया था, और तब से यह हर साल 9 सितंबर को मनाया जाता है।
जलवायु परिवर्तन का हिमालय पर असर
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, नौणी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष डॉ. सतीश के. भारद्वाज ने अपने संबोधन में कहा, “जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का सीधा असर हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा है, जिससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं और मौसम का चक्र बिगड़ रहा है।” उन्होंने इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने और जागरूकता फैलाने के लिए युवाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया।
कार्यक्रम की शुरुआत BSI के वैज्ञानिक-ई, डॉ. कुलदीप एस. डोगरा ने सभी अतिथियों का स्वागत करके की। इस अवसर पर नौणी विश्वविद्यालय की डॉ. प्रतिमा वाडिया और डॉ. कार्तिकेय सहित 12 छात्र भी विशेष रूप से उपस्थित रहे।