नौणी विश्वविद्यालय में फ्लोरिकल्चर पर 33वीं वार्षिक बैठक शुरू

सोलन: फूलों की खेती पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (ए.आई.सी.आर.पी.) की 33वीं वार्षिक समूह बैठक आज डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में शुरू हुई। बैठक में नई तकनीकों, सहयोग और उद्यमिता के माध्यम से भारत में फूलों की खेती के क्षेत्र में उभर रहे विशाल अवसरों का दोहन करने का जोरदार आह्वान किया गया। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन आई.सी.ए.आर.-पुष्प अनुसंधान निदेशालय (डी.एफ.आर.), पुणे द्वारा नौणी विवि के फ्लोरिकल्चर और लैंडस्केप वास्तुकला विभाग के सहयोग से किया जा रहा है। बैठक में 22 ए.आई.सी.आर.पी. केंद्रों के वैज्ञानिकों, विश्वविद्यालय के संकाय और पेशेवरों सहित लगभग 90 फ्लोरिकल्चर विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।

सत्र का उद्घाटन करते हुए, मुख्य अतिथि एवं नौणी विवि के कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने फ्लोरिकल्चर के सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व पर जोर दिया। उन्होंने इसे विशेष रूप से भारत के युवाओं के लिए एक ‘स्मार्ट आजीविका’ अवसर के रूप में वर्णित किया और अनुसंधान संस्थानों को अपने काम को ‘प्रयोगशाला से भूमि और भूमि से स्केलेबल व्यवसाय’ में बदलने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने छात्रों और उत्साही लोगों को व्यावहारिक पुष्प कृषि कौशल से लैस करने और क्षेत्र में मांग और विकास को बढ़ाने के लिए अल्पकालिक, व्यावहारिक पाठ्यक्रमों के विकास का आग्रह किया। प्रो. चंदेल ने इस क्षेत्र के सामने एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में जलवायु परिवर्तन पर भी प्रकाश डाला और इसके प्रभाव को कम करने के लिए स्थानीय, आसानी से लागू किए जा सकने वाले समाधानों की वकालत की।

आईसीएआर के फूल, सब्जियां, मसाले और औषधीय पौधे के सहायक महानिदेशक डॉ. सुधाकर पांडे ने फ्लोरिकल्चर को ‘सनशाइन सेक्टर’ बताते हुए कहा कि यह क्षेत्र 10 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है, जो कृषि की वृद्धि दर से दोगुना है। उन्होंने बताया कि भारत का वार्षिक फूलों की खेती का निर्यात 700 करोड़ रुपये से अधिक है, जिसमें सूखे फूलों का हिस्सा लगभग 70% है। उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा फूलों की खेती को 100% निर्यातोन्मुखी उद्योग के रूप में मान्यता दी गई है।

डॉ. पांडे ने नई किस्मों की मांग को पूरा करने के लिए घरेलू फूलों के प्रजनन में अधिक प्रयास करने का आह्वान किया और नर्सरी उत्पादन, कट फ्लावर और मूल्यवर्धित पुष्प उत्पादों में उद्यमिता के अवसरों की पहचान करने की बात की। उन्होंने नए कीटों और बीमारियों, जलवायु परिवर्तन और उपभोक्ता की जरूरतों में बदलाव जैसी उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए वैज्ञानिकों और निजी क्षेत्र के बीच अधिक सहयोग को प्रोत्साहित करने की बात रखी।

नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान ने हिमाचल प्रदेश में फूलों की खेती में हुई प्रगति की सराहना की और उम्मीद जताई कि पूर्वोत्तर राज्य भी फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए अपने अनुकूल जलवायु का लाभ उठाएंगे। उन्होंने ऑर्किड और अन्य फूलों की किस्मों पर विश्वविद्यालय के शोध के बारे में भी जानकारी साझा की। इससे पहले, डीएफआर पुणे के निदेशक और एआईसीआरपी ऑन फ्लोरीकल्चर के राष्ट्रीय समन्वयक डॉ. के.वी. प्रसाद ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और समन्वयक रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने 22 एआईसीआरपी केंद्रों की सफलता की कहानियां साझा की और देश भर में अपनाने के लिए विकसित की गई नवीन तकनीकों पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने पुष्प उत्पादन में आवश्यक तेल निष्कर्षण, प्राकृतिक रंग और खाद्य फूलों पर भी अधिक अनुसंधान की वकालत की। उन्होंने स्थायी घरेलू खपत को बढ़ावा देने के लिए कृत्रिम और प्लास्टिक के फूलों के उपयोग को कम करने पर जोर दिया। उद्घाटन सत्र में भाग लेने वाले केंद्रों के कई प्रकाशनों और विकसित मूल्य वर्धित उत्पादों का विमोचन भी किया गया। इस अवसर पर डॉ एन के ददलानी, डॉ रमेश कुमार, डॉ ओपी सहगल, डॉ वाई. सी गुप्ता और डॉ राजेश भल्ला जैसे प्रख्यात पुष्प वैज्ञानिकों को क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए सम्मानित किया गया।

अगले दो दिनों में, वैज्ञानिक सत्रों में विभिन्न एआईसीआरपी केंद्रों की प्रस्तुतियाँ होंगी और आने वाले वर्ष के लिए रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। कार्यक्रम में केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला के निदेशक डॉ ब्रजेश सिंह, खुम्ब अनुसंधान निदेशालय चम्बाघाट के निदेशक डॉ वी.पी. शर्मा, नौणी विवि में फ्लोरिकल्चर और लैंडस्केप आर्किटेक्चर के विभाग अध्यक्ष डॉ एसआर धीमान सहित वैधानिक अधिकारी, विभिन्न विभागों के और संकाय सदस्यों ने भाग लिया।