आशा वर्कर: टीबी के खिलाफ जंग की गुमनाम नायिकाएँ, नहीं मिला सम्मान

नाहन : देशभर में ‘टीबी हारेगा, देश जीतेगा’ अभियान के तहत टीबी जैसी घातक बीमारी को जड़ से मिटाने के लिए सरकार प्रयास कर रही है। इस अभियान की सबसे अहम कड़ी आशा वर्कर महिलाएँ हैं, जो घर-घर जाकर मरीजों की स्क्रीनिंग करती हैं, बलगम के सैंपल भी लेती हैं, जरूरत पड़ने पर मरीज को अस्पताल भिजवाती हैं और इलाज के दौरान दवाइयाँ घर-घर जाकर पहुंचाती हैं।

लेकिन अफसोस की बात यह है कि इतनी मेहनत और जोखिम भरा काम करने वाली इन आशा वर्करों का सम्मान नहीं मिल रहा। जब ईनाम और प्रशंसा देने की बारी आती है, तो मंच पर ग्राम प्रधानों और विभागीय अधिकारियों को बुलाकर शाबाशी दी जाती है। इससे आशा वर्करों में नाराज़गी और हताशा है।

आशा वर्करों की पीड़ा
एक आशा वर्कर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हम दिन-रात लोगों की सेवा में लगे रहते हैं। टीबी के मरीजों के बीच जाना, बलगम इकट्ठा करना और घर-घर जाकर दवाइयाँ खिलाना — ये आसान काम नहीं है। अपनी जान जोखिम में डालकर हम यह सब कर रहे हैं, लेकिन ईनाम प्रधानों और अफसरों को मिलते हैं। यह सरासर अन्याय है।”

मीना, जो वर्षों से आशा वर्कर के तौर पर काम कर रही हैं, ने कहा, “हम सिर्फ टीबी ही नहीं, बल्कि टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की देखभाल और कई स्वास्थ्य सेवाओं में अहम जिम्मेदारी निभाते हैं। लेकिन जब सम्मान की बारी आती है, तो हमें भुला दिया जाता है। सरकार को हमारी मेहनत का भी सम्मान करना चाहिए और हमारे लिए भी प्रोत्साहन योजना बनानी चाहिए।”

फील्ड में जोखिम, सुरक्षा का अभाव
आशा वर्कर रंजना ने बताया कि कई बार तो फील्ड में काम करते हुए उन्हें सुरक्षा उपकरण तक नहीं मिलते। “हम जान जोखिम में डालकर मरीजों के बीच काम करते हैं। फिर भी हमें सिर्फ मामूली मेहनताना मिलता है और सम्मान तो दूर की बात है। प्रधान ऑफिस में बैठकर कागजी कार्रवाई करते हैं और सम्मान वही ले जाते हैं। यह कहां का न्याय है?”

80% से ज्यादा योगदान, फिर भी उपेक्षा
आंकड़ों की मानें तो ग्रामीण स्तर पर टीबी मरीजों की पहचान और दवा वितरण में 80% से ज़्यादा योगदान आशा वर्करों का ही है। बावजूद इसके, पब्लिक मंचों पर प्रधानों और विभागीय अधिकारियों को सम्मानित किया जाता है। फील्ड में दिन-रात मेहनत करने वाली आशा वर्करों को सिर्फ एक मामूली मेहनताना देकर उनकी मेहनत को अनदेखा कर दिया जाता है।

मांगें और सवाल
आशा वर्करों की साफ मांग है कि उनके काम के अनुपात में उन्हें भी मंचों पर सम्मान और इनाम दिया जाए। सरकार को उनके लिए अलग से सम्मान योजना बनानी चाहिए। साथ ही उनके वेतन और सुविधाओं को भी बेहतर किया जाए।

फिलहाल इस मुद्दे पर जब संबंधित अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई। सवाल यही है — क्या सरकार और प्रशासन इन असली हीरो आशा वर्करों की मेहनत को वाजिब सम्मान दे पाएंगे, या ये महिलाएँ यूँ ही गुमनाम रह जाएंगी?

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पंकज जयसवाल

पंकज जयसवाल, हिल्स पोस्ट मीडिया में न्यूज़ रिपोर्टर के तौर पर खबरों को कवर करते हैं। उन्हें पत्रकारिता में करीब 2 वर्षों का अनुभव है। इससे पहले वह समाज सेवी संगठनों से जुड़े रहे हैं और हजारों युवाओं को कंप्यूटर की शिक्षा देने के साथ साथ रोजगार दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।