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आधुनिकता या पिछडापन

आधुनिकता की दौड में मनुष्य खोता जा रहा अपना अस्तित्व, पहचान | सिमटता और शायद सिंकुडता जा रहा कुछ एक उपकरणों का साथ लेकर | भूल गया, चैन से जीना, चौपाल की मस्ती, चिट्ठी का मजा, चुल्हे की रोटी, पीपल की छांव, कबड्डी का खेल, शादी के गीत, विछोह के आंसू | मैं इसे क्या ...

नन्ही कली

नन्ही कली जो मसल दी गई फूल बनने से पहले पुकारती, चीखती सी कहती मां से, मां तुम इतनी निष्ठुर कैसे हो गई, जानती हो तुम कि आधार है लडकी इस समाज का, रंगहीन है संसार इसके बिना, दो वंशों की आन है लडकी और तुम-तुम इसे गर्भ में मिटाने पर तुली हो, बदलनी है ...