कौशिश आखिर क्या है यह कौशिश? कोई रहस्य है या कोई साजिश? असमंज में हूं क्या है यह कौशिश।। सबकी…
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जीवन एक कश्ती है जिस पर दुनिया नाविक है वो इंसान जिसने हमेशा किया अपना गुणगान दुख-सुख से भरा सागर…
मेरा शरीर मेरा है| जैसे चाहूँ, जिसको सौंपूँ! हो कौन तुम- मुझ पर लगाम लगाने वाले? जब तुम नहीं हो…
ढूंढता रहा खजाना खुशियों का भौतिकता की चकाचौंध से ऊंची दुकानों में फीके पकवानों में जलाता रहा दीपों की पंक्ति…
समय की उदासी में जब धुन्ध घने पेडों से ऊपर उडती बादलों में समा जाती है निरन्तर बरसते बादल प्रातः…
ऊंचे हिमाच्छादित शिखरों पर फैला आसमान हरे भरे देवदार के वृक्षों की शोभा मध्य में बहता प्रपात सर्द झोंको से…
कितना भ्रमित मन कि इक बार का मिलन मांगता था सदैव, पर क्या दे पाये तुम कोई नया संदेश, उकेर…
तुम्हारा जाना मेरे लिये आम बात नही मैं अनाथ सी हो गई हूं क्योंकि तुम मेरी जिन्दगी में सर्दी की…
आधुनिकता की दौड में मनुष्य खोता जा रहा अपना अस्तित्व, पहचान | सिमटता और शायद सिंकुडता जा रहा कुछ एक…
नन्ही कली जो मसल दी गई फूल बनने से पहले पुकारती, चीखती सी कहती मां से, मां तुम इतनी निष्ठुर…