सोलन: हिमाचल प्रदेश के युवा वैज्ञानिक ने जापान में एएपीपीएस-डीपीपी यंग रिसर्चर अवार्ड-2023 हासिल कर प्रदेश व देश का नाम रोशन किया है। सिरमौर जिला की पच्छाद तहसील के नैनाटिक्कर के समीप मछाड़ी गांव के डॉ. पंकज अत्री जापान की क्यू शू यूनिवर्सिटी में हैं एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है। उन्हें यह अवार्ड उन्हें एप्लाइड प्लाजमा के क्षेत्र में रिसर्च कार्य के लिए प्रदान किया गया।
डॉ. पंकज अत्री अपनी शोध के लिए वल्र्ड साइंटिस्ट में एक जाना पहचाना नाम है। चार बार वह वल्र्ड के टॉप दो फीसदी वैज्ञानिकों की सूची में आ चुके हैं। वर्ष 2017, 2020 से2023 तक लगातार तीन वर्षों से वह इस सूची में हैं। डॉ. अत्री को 13 नवंबर 2023 को एएपीपी-डीपीपी यंग रिसर्चर अवार्ड (अंडर-40) के लिए हुआ है। डिविजन ऑफ एप्लाइड प्लाजमा फीजिक्स में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें यह पुरस्कार 13 नवंबर को दिया गया। इससे पिता जगदीश शर्मा, छोटे भाई अंकित अत्री और बहन निताशा अत्री ने डॉ. पंकज को बधाई दी है।
डॉ.पकंज अत्री का जन्म हरियाणा के कालका में 9 मार्च 1983 को जगदीश शर्मा के घर हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी स्कूल नाहन से हुई। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उनका दाखिला नाहन के ब्वॉयज सीनियर सेकंडरी स्कूल नाहन में हुआ। वह नॉन मेडिकल विषय के छात्र थे। जमा दो के बाद डिग्री कॉलेज नाहन बीएससी की। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसएससी में प्रवेश लिया। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी की वर्ष 2013 में।
पंकज अत्री की पीएचडी कंपलीट होने के बाद उनका चयन साउथ कोरिया की कांगून यूनिवर्सिटी में सहायक प्राध्यपक के रुप में हुआ। यहां सेवाकाल के दौरान उनका चयन जापान की सम्मानजनक फैलोशिप जेएसपीएस के लिए 2016 में हुआ। उनका चयन जापान की टॉप छटी और विश्व की 120 से 130 रैंक वाली क्यूशू यूनिवर्सिटी के लिए हुआ। उनकी रिसर्च लगातार नए आयाम छू रही थी।
एक साल बाद ही वर्ष 2017 में उन्हें बैल्जियम की प्रतिष्ठित मैरी क्यूरी फैलोशिप फॉर यूरोपियन यूनिवर्सिटी मिली। वहां से दो साल के लिए बैल्जियम चले गए। उनकी शोध एप्लाइड प्लाजमा का उपयोग कैंसर की लाइलाज बीमारी में भी होता है। दो साल की फैलोशिप कंपलीट करने के बाद वह दोबारा जापान की क्यूशू यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। वर्तमान में वह इसी यूविवर्सिटी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।