सोलन: स्वच्छ भारत अभियान को शुरू हुए लगभग एक दशक बीत चुका है, लेकिन कचरे के निपटान को लेकर अभी भी बड़ी समस्याएं सामने आ रही हैं। लोग एक दशक बाद भी यह नही समझ पाए हैं कि घर का बचा खाना या कचरा खुले में डालने की क्या हानियां हैं। सोलन शहर में शायद ही कोई ऐसा स्थान हो जहां कचरा बिखरा ना दिखाई दे। यूं तो सोलन शहर में घर-घर से कचरा संग्रहण किया जाता है, लेकिन इसके बाद भी जगह-जगह कचरे के ढेर दिखाई देते हैं।
शहर का कथेड़ व न्यू कथेड़ इस दिनों सड़क किनारे घरों का बचा खाना डालने को लेकर चर्चा में है। स्थानीय लोगों ने बताया कि कुछ लोग रात के अंधेरे में या सुबह सवेरे घरों का बचा खाना और कचरा पुलिस लाईन से सामने वाली सड़क के किनारे अथवा पैरापिट पर डाल रहे हैं। बुद्धिजीवी लोगों का मानना है कि यदि वास्तव में बचे खाने का सदुपयोग करना है तो उसे पास की आश्रय गौशाला में दिया जाना चाहिए। बुद्धिजीवी लोगों का कहना है कि सड़क किनारे भोजन से केवल दुर्गंघ आती है, और गंदगी फैल रही है, साथ ही यहां आवारा कुत्तों का जमावड़ा हो गया है। उन्होंने कहा कि आवारा कुत्तों के कारण यहां से पैदल जाने वाले स्कूली बच्चों व लोगों को परेशानी होती है।
एक समय था, जब अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम पश्चिमी देशों से अन्न मांगते थे। भारत में हरित क्रांति आई और हम पर्याप्त अनाज उगाने लगे, आज बुरे प्रंबधन के कारण हमारा आधा अन्न बर्बाद हो रहा है। यह बर्बादी उस देश में है, जहां आज भी करोड़ों गरीब हैं, और भूखा सोने को मजबूर हैं।
नगरपालिका प्रबंधन नियम, 2016, हिमाचल प्रदेश परिषद/नगर पंचायत अधिनियम, 1994 एवं पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत कचरे के निपटान को लेकर कठोर नियम हैं। नगरपालिका के नियमों के अनुसार खुले में कचरा डालने पर जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन जुर्माने को भी केवल घर-घर से कचरा देने वालों से ही वसूला जा रहा है। खुले में कचरा डालने वालों को पकडने के लिए नगर निगम से पास कोई ठोस उपाय नहीं है।
उधर इस विषय पर जब वार्ड न. 17 के सदस्य सरदार सिंह ठाकुर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि लोगों को चाहिए की वे बचा खाना गौशाला को दें।